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का एक अंग रही है जिसके अन्तर्गत श्रावण शुक्ला पंचमी को दीवार पर नागों के चित्र बना कर उनकी पूजा की जाती है तथा उन्हें विभिन्न स्थानों पर प्रतीक के रूप में दूध पिलाया जाता | यह पर्व भी हिन्दू, जैन और वैष्णव समान रूप से मनाते हैं ।
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शीतला सप्तमी :- श्रावण शुक्ल सप्तमी को शीतला मां की पूजा ग्राज भी जैन और वष्णवों में प्रचलित है, जिसमें तीन दिन तक ठन्डा भोजन किया जाता है । चेचक से सुरक्षा पाने के लिए उस दिन मातायें शीतला माता को जल, दूध आदि से पूजन करती हैं ।
कजलियां:- यह त्योहार देश के कई हिस्सों में श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिसके अन्तर्गत परस्पर जैन श्रोर वैष्णव दोनों ही सम्प्रदायों में ग्रापस में कजलियों का ग्रादान-प्रदान कर वर्ष भर की होने वाली गल्तियों की क्षमा मांगी जाती है। इसे भुजरिया भी कहते हैं ।
गो पूजन:- गाय भी हिन्दू संस्कृति में यादि से ही मां की तरह पूज्य मानी गयी है । आज भी कार्तिक कृष्ण द्वादशी को गौ माता का पूजन जैन और वैष्णव में समान रूप से उसी श्रद्धा के साथ किया जाता है ।
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धन तेरस :- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को दीपक जला कर यह पर्व दोनों ही सम्प्रदायों में मनाया जाता है तथा उस दिन वर्तन भी खरीदने का एक जैसा प्रचलन है ।
होली :- फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका दहन के पर्व पर जैन और वैष्णव दोनों ही सम्प्रदाय के लोगों को इसमें भाग लेते देखा जा सकता है। जैनों के घरों से गोवर की मलरियां डोरी में पिरो कर होलिका पर चढ़ाई जाती है । होलिका की श्रग्नि सभी लोग अपने घर से लाते हैं तथा अगले दिन स्नेह और पारस्परिक प्रेम के प्रतीक रंगों का त्योहार शुरू हो जाता है जो