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( १६६ ) जनवरी को पड़ने वाले इस पर्व पर हिन्दू व जैन निश्चित मुहूर्त पर पिसे हुए तिल को शरीर पर मल कर स्नान करते हैं । घरों में तिल व फूली के लड्डू बनाये जाते हैं, दाल और चावल की खिचडी इस मौके पर खाई जाती है तथा इन सब का वितरण गरीबों में भी किया जाता है। ___ रक्षा बन्धनः-सावन शुदी पन्द्रह को यह त्यौहार भी दोनों सम्प्रदाय के लोग विशेष उत्साह के साथ मनाते हैं। सभी नए और स्वच्छ कपड़े धारण कर इसमें हिस्सा लेते हैं । वहिन और भाई के पवित्रपूर्ण तथा संस्कारगत दायित्व का पर्व रक्षा-बन्धन समस्त हिन्दू संस्कृति का एक गरिमामय प्रतीक है। इस दिन वहिन अपने भाई को पवित्र प्रेम से जुड़े हुए राखी के डोरे उस की कलाई में वांधती है और भाई जीवन पर्यन्त उसकी रक्षा का वचन देता है । इस त्योहार पर वैष्णव व जैन सभी परिवारों की लड़कियां पिता के घर बुला ली जाती हैं, इसके अतिरिक्त प्रायः ब्राह्मण पूरे दिन दोनों सम्प्रदाय वालों को राखी वांधते हैं और उनके प्रति अपने आशीष प्रगट करते हैं।
गणगौरः-यह सौभाग्यवती नारियों का व्रत है। राजस्थान में तथा अन्यत्र गणगौर की झांकी बड़ी सजधज व गाजे-बाजे के साथ निकाली जाती है, जिसमें वैष्णव व जैन सभी समान रूप से सम्मिलित होते हैं । यह पर्व चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है।
गुरू पूर्णिमा:-आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह त्यौहार मूलतः गुरू अथवा प्राचार्य की पूजा से सम्बद्ध है जिसका समान प्रचलन आज भी जैन और वैष्णवों में श्रद्धा के साथ एक ही धरातल पर देखा जा सकता है। ।
नागपंचमी:-नागों की पूजा प्राचीन काल से ही हिन्दू संस्कृति