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त्यौहार और पर्व
जैन समाज द्वारा मनाये जाने वाले वे त्यौहार जो काफी प्राचीन काल से भारतवर्ष में चले आ रहे हैं आज भी वैष्णव के समानान्तर दिखाई पड़ते हैं। वैष्णव के समान जैनियों में भी ये त्यौहार उसी सद्भावना, श्रद्धा और एकत्व के साथ एक ही समय पर, एक ही तरीके से मनाये जाते हैं। .
दीपावली:-कार्तिक वदी अमावस्या को दीपावली के पावन पर्व पर रात्रि के समय साफ-सुथरे मकान में जैन और वैष्णव दोनों ही लक्ष्मी पूजन के साथ पूरे उल्लास और उत्साह पूर्वक दीप जलाते हैं, एक-दूसरे के यहां लक्ष्मी पूजन का आमन्त्रण भेजते हैं और प्रसाद वितरण करते हैं । अमावस्या के अगले दिन प्रातःकाल दोनों में ही गोवर्धन पूजा होती है । द्वितीया के दिन दोनों ही पक्ष समान रूप से भाई दौज का त्यौहार मनाते हैं, जिसमें वहिन भाई को तिलक लगा कर उसका मुंह मीठा करती है और भाई बहिन के पैर पड़ कर उससे अाशीप एवं शुभ कामनायें ग्रहण करता है । दीपावली की रात दीप और ज्योति तथा हर्प की प्रतीक पटाकों की ऐसी रात है जहां जैन और वैष्णव किसी भी पृष्ठ भूमि पर दूर-दूर तक अलग नहीं दिखाई पड़ती।
मकर सक्रान्ति:-यह पर्व भी हिन्दू और जैन परिवारों में समान उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। चौदह