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( १७१ ) बड़े उल्लास के साथ पंचमी तक मनाया जाता है।
विजय दशमी:-अशुभ की पराजय और शुभ की विजय के प्रतीक आश्विन शुक्ल दशमी को मनाये जाने वाला ये पर्न जैन और नैष्णव में उसी व्यापक विश्वास तथा श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन नीलकण्ठ का दर्शन आवश्यक एवं शुभ माना जाता है । यह राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में मनाया जाता है ।
अक्षय तृतीया-वैशाख शक्ल तृतीया को पड़ने वाले इस पर्व का महात्म जहां जैन धर्म के अनेक ग्रन्थों में वर्णित है वहीं वदिक धर्म के पुराणों में भी इसे मान्यता दी गयी है । जैन धर्म के शास्त्रों में इससे लम्बा तप अन्य कोई नहीं माना गया है। इस तप को वी तप भी कहा जाता है और उसका पूरक दिन अक्षय तृतीया ही है। भगवान ऋषभदेव ने एक वर्ष के बाद आज के ही दिन इक्षुरस से पारणा किया था।
गोगा नवमी:-कार्तिक शुक्ल नवमी को मिट्टी के घोड़े पर - वैठी हुई मूर्ति बना कर दोनों ही सम्प्रदायों में गोगा जी का . पजन किया जाता है । ---. ...इसके अतिरिक्त जैन वौद्ध एवं वैदिक ग्रन्थों के अनुशीलन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय में पर्व और त्यौहार जीवन के पावश्यक अंग थे । शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब कि समाज में पर्व, त्यौहार व उत्सव का आयोजन न रहा हो । इतना ही नहीं बल्कि एक-एक दिन और तिथि में दस-दस तथा उससे भी अधिक पर्वो का सिलसिला चलता रहता था। सामाजिक जीवन में बच्चों के पर्व अलग युवकों तथा औरतों के पर्व
अलग और वृद्धों के पर्व अलग हुआ करते थे जिसके कारण . भारत का जन-जीवन बहुत ही उल्लिसित और नित्य प्रति आनं
दित रहा करता था।' ... १-जीवन दर्शन : अमर मुनि -पृ २४२