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- जैन और यज्ञोपवीत
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उपनयन या यज्ञोपवीत धारण सोलह संस्कारों में से एक संस्कार है। इस शब्द का अर्थ समीप लेना है। उप' अर्थात समीप और नयन का अर्थ लेना है। आचार्य ,या गुरू के निकट वेद अध्ययन के लिये लड़के को लेना अथवा-ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश करना ही उपनयन है। इस संस्कार के चिन्ह स्वरूप लड़के कीः कमर में मूज-की-डोरी बांधने को मोन्जी. बन्धन और गले में सूत के तीन धागे डालने को उपवीत, यज्ञोपवीत या जनेऊकहते हैं-यज्ञन संस्कृतं उपवीतम् । यह एक शुद्ध वैदिक क्रिया या.प्राचार है और अब भी वर्णाश्रम धर्म के पालन करने वालों में प्रचलित है। आदि पुराण में श्रावकों को भी यज्ञोपवीत धारण करने की प्राज्ञा दी गई है और तदनुसार दक्षिण तथा कर्नाटक के जैन गृहस्थों में जनेऊ पहना भी जाता है। इधर कुछ समय से उनकी देखा-देखी उत्तर भारत के जैन भी जनेऊ धारण करने लगे हैं।'
जनेऊ धारण कर लेने के उपरान्त जो क्रियायें अपनानी पड़ती हैं, उसमें स्वयं की कमजोरी के कारण कुछ जैनियों ने उसका त्याग कर दिया है और जो उसकी साधना में समर्थ हैं
१-यज्ञोपवीत और जैन धर्म : जन साहित्य और इतिहास-नाथू
राम जी प्रेमी-पृ० ५०
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