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( १४७ ) यस्या दुग्धतादिना नरतनुः पोपुष्यते सर्वथा । वाणिज्यं कृषि कर्मभारवहनं यज्जातिमालम्बते ।। .. सा रक्ष्या पशुजातिरुत्तमजन कर्त्तव्य सेवाधिया। हिंसातो वलितोऽसिमार भरणात्क्रौर्याद् भृशंताऽनात् ॥
जिनके दूध और घी से सब प्रकार मनुष्य जाति के शरीर का पोषण होता है, जिन्हें गाड़ी वगैरा में जोत कर व्यवसायादि का काम काज लिया जाता है, जिनकी गर्दन पर जुया रख कर खेती का तमाम काम लिया जाता है, जिनकी पीठ पर भार लादा जाता है, उत्तम पुरुषों को चाहिये कि कर्त्तव्य तथा सेवा-भाव से उन पशुओं को हिंसा, बलिदान अतिभार लादने और क्र र मनुष्यों द्वारा निर्दयतापूर्वक मारने पीटने से बचाना चाहिये ।'
समस्त भारतवर्ष में गोपालन और गौशालानों का महत्व दिखाई दे रहा है । वह श्रीकृष्ण की देन है। गुजरात-सौराष्ट्र और राजस्थान आदि में गौनों के साथ ही अन्य प्राणियों को भी रखा जाता है, उनका भी पालन पोषण किया जाता है जिसे 'प्रांजरापोल' कहते हैं, यह भगवान अरिष्टनेमि' की देन है।२।।
गांधी जी गौ रक्षा के सम्बन्ध में जैन और वैष्णवों को समदृष्टि से देखते हुए कहते हैं कि हिन्दुस्तान जैसे मुल्क में जहां जीव दया का धर्म पालने वाले असंख्य मनुष्य वसते हैं और जहां गाय को माता के समान मानने वाले करोड़ों धर्मात्मा हिन्दू रहते हैं, वहां गाय का यह बुरा हाल है।
जैन लोग भी गाय को गऊ माता ही कहते हैं। दीवाली के १--कर्त्तव्य कोमुदी : भारत भूपण शतावधानी पं० मुनि श्री रत्न
चन्द्र जी महाराज (जैन द्वितीय खण्ड-पृ०२५२) . २-भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण-एक अनुशीलन
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