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. ( १४६ ) नन्द जी मुनि लिखते हैं कि विदेशी मुद्रा अजित करने के लिए गौ हत्या आवश्यक प्रतीत होती है । सुभाषित के समान मधुर तथा साधु के समान निर्दोष गौ को मार कर गौ पालक गोपाल कृष्ण के राष्ट्रीय सहोदर और महावीर भगवान के अहिंसक देश के प्रतिनिधि व्यापारी किस अन्धपातक के अतल गड्डर में गिरे जा रहे हैं । आज अन्न निर्भर होने की इच्छा रखने वाला भारत कृपि के परम सहायक गौवंश पर पारा चलाये, यह समर्थन कौन पंडिताभिमानी अर्थशास्त्री करना चाहता है। . . देश में जब भी मातृभूमि की स्वतन्त्रता और गौरक्षा का अवसर आया है तब प्रायः जैनियों ने स्वाधीनता के सच्चे पक्ष का समर्थन किया और उसके लिए अपने सर्वस्व तथा जीवन निधि की तनिक भी परवाह नहीं की। - जैनों के उपासक दशांग सूत्र में भगवान महावीर के सद श्रावकों का वर्णन इस प्रकार किया गया है। (१) आनन्द - वाणिजग्राम - गायों की संख्या ४ गोकुल (२) कामदेव - चम्पानारी
६ गोकुल (३) चूलणीहिता- बनास
८ गोकुल (४) सरादेव - वनास
६ वर्ग (५) चुल्लशतक - आलम्पिकानारी
६ गोकुल (६) कुंड कौलिक-कम्पिलपुर -
६ गोकुल (७) सद्दौल पुत्र- पोलासपुर
१ गोकुल (८) महाशतक - राजगृह
८ गोकुल (8) नन्दिनीपता श्रावस्ती -
४ वर्ग (१०) सालिहिपिया श्रावस्ती ~~
४ गोकुल — नोट :-दस हजार गायों का एक गोकुल होता है । १-जैन शासन : श्री सुमेरुचन्द्र जी दिवाकर सिवनी-पृ० ३४०
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