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( १४५ ) काल में बड़े यत्न से गौ का पालन-पोषण, रक्षण किया गया है। तभी तो गौवंश की इतनी वृद्धि हुई कि दो-चार या दस-बीस ही। नहीं चालीस, साठ और अस्सी हजार का गौ-कुल रखने वाले जैन श्रावकों का उल्लेख 'उपासक दशांग' नामक सातवें अंग-सूत्र में पाया जाता है।'
सम्राट अकवर के समय गौ-हत्या वन्द कर दी गई थी। उनमें कई हिन्दू जैन-मुनि महात्माओं तथा विद्वानों का बड़ा योग रहा है।
गाय के गोबर से कन्डे (उपले) बनते हैं, जो रसोई बनाने के काम में लाये जाते हैं। अधिक उपज पैदा करने के लिये गोबर का खाद खेतों में डाला जाता है । गौ-मूत्र औपधं के उपयोग में में भी आता है। गाय के बछड़े ही खेती करने के काम आते हैं। गाय के मर जाने पर भी उसकी हड्डी, सींग, वाल व चमड़ी काम आती है, गौवंश के ऋण से हम कभी उऋण नहीं हो सकते। जैनों में दूध के लिए बकरी के बजाय गाय आज भी पाली जाती है।
वर्तमान में देहली में जो गौ हत्या वन्द कराने का आन्दोलन चलाया गया था, इस विराट प्रदर्शन के संयोजक जैन मुनि श्री सुशील कुमार जी ही नियुक्त हुए थे। जैनियों का शक्तिशाली संगठन सबके साथ मिल कर कार्य कर रहा था।
श्री भगवान महावीर २५वीं शताब्दी के सन्दर्भ में २५०० गायों को कसाइयों की छुरी से बचा कर उनके पालने की समुचिंत व्यवस्था श्री आदर्श गौशाला टीकोली (गुड़गांव) हरियाणा राज्य में की जा रही है । श्री सुराणा जी जैन-हिन्दू ही हैं ।
आदि कृषि शिक्षक भगवान आदिनाथ पुस्तिका में श्री विद्या
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१-कल्याण वर्ष ४१ अंक ७ जुलाई १६६७--१०५६