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भारतीय संस्कृति और गाय के प्रति जैनों की श्रद्धा
भारतीय संस्कृति में निःसन्देह गाय को मां के समानान्तर मान्यता दी गयी है। श्रद्धा, सम्मान, पूजा और त्याग की अधिकारिणी गो माता के प्रति आदि काल से ही एक पवित्र सम्बन्ध हम अपने भीतर वाल्यकाल से ही अनुभव करने लगते हैं ।
'वाल्यकाल से ही हमारे ऊपर गो का उपकार या ऋण चालू हो जाता है। मां का दूध क्रमशः घटता जाता है और बच्चे की भूख क्रमशः बढ़ती जाती है । स्थिति यहां तक चली जाती है कि केवल माता के दूध से उसकी क्षुधा निवृत्ति नहीं हो पाती । दूध उसके शरीर को पुष्ट करने वाला और शक्ति देने वाला होने से उसकी श्रावश्यकता तो बड़े होने पर भी बनी रहती है, पर बच्चे के लिए तो वही आरम्भ से अभ्यस्त आहार है तथा जहाँ तक दांतों से चबाने की शक्ति नहीं मिल जाती, वहां तक अन्न उसके स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं होता । इसलिए जब माता के दूव से उसका पेट पूरा नहीं भरता तो गाय का दूध उस कमी की पूर्ति कर देता है । श्रतएव वाल्य जीवन से ही 'गी' का स्थान 'माता' के समान ही उपकारी वन जाता है । गो-मूत्र
और गोवर-इन
दोनों को हिन्दू धर्म भूमि पर गोवर लीप
शास्त्रों में पवित्र माना गया है । ग्रपवित्र देने से वह पवित्र वन जाती है । प्राचीन