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( १४१ ) पुरलिया से ५ मील दूर छर्रा ग्राम में शिव मन्दिर के मुख्य द्वार पर भगवान चन्द्र प्रभु की मूर्ति खड़गासन है, यक्ष-यक्षिणी सहित है । इसे लोग चन्द्र देवता के नाम से पूजते हैं। .
शिव मन्दिर में शिवलिंग के सामने वाली दीवाल में एक बड़े पाले में भगवान आदिनाथ की पदमासन मूर्तिधरणेन्द्र पद्मावती सहित विराजमान है । नीचे भगवान को गोदी में खिलाते हुए मां-बाप, दासियां दिखायी गयी हैं ।
मथुरा में कई ऐसी मूर्तियां भगवान नमिनाय की प्राप्त हुई हैं, जिनमें एक ओर श्रीकृष्ण और दूसरी ओर बलराम भी अंकित
हैं।
_ 'जैसलमेर के हिन्दू राजानों ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जैसा कि पहले भी कहा गया है कि यह क्षेत्र जैन मुनियों की तपोभूमि रहा है । जब भी ये यहां आते थे, उनकी सेवा में जैनियों के साथ हिन्दू · भी रहा करते थे। चौहदवीं शताब्दी में यहां कई जैन मन्दिरों एवं उपाश्रयों का निर्माण हुना है। इस काल में जैसलमेर के महाराजा लक्ष्मण सिंह एवं उनके उत्तराधिकारी वैरसी ने हिन्दू और जैन धर्मों के मध्य समन्वय स्थापित करने में ठोस प्रयत्न किये थे, उस समय हिन्दू मन्दिरों में जैन धर्म के आराध्य देवों की प्रतिमाओं को प्रतिष्ठापित करना कितने साहस का काम रहा होगा । लक्ष्मी नाथ जी, सूर्य भगवान एवं रत्नेश्वर महादेव के देवालयों में पार्श्व नाथ जी की प्रतिमा स्थापित की गयी थीं । जिन्हें आज भी प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। धर्म समन्वय के ऐसे उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ हैं। वस्तुतः यह कार्य धर्म समन्वयता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य है । इन समन्वयी मंदिरों में एक साथ ही पूजा होती है, भोग चढ़ता है तथा भारती उतारी जाती है । ऐसा ही