________________
+
:
( १४२ ) एक मन्दिर जैसलमेर के वरसलपुर ठिकाणे (अभी बीकानेर जिले में ) में स्थित है । यहां की लक्ष्मीनाथ जी की मूर्ति के पास ही श्री पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा विद्यमान है । मन्दिर में एक शिला लेख उपलब्ध है, जिसके अनुसार यदि इन दोनों देवों की पूजादि एक साथ नहीं की जायेगी तो इस क्षेत्र में देवी विपत्तियां विनाश के कगार ढा देंगी। इन देवालयों में हिन्दू व जैनी दोनों ही पूजार्थ जाया करते है ।
जैसलमेर नगर में दस जैन मन्दिर हैं तथा ब्रह्मासर, देवीकोट, लुद्रवा, अमर सागर आदि स्थानों पर भी जैन मन्दिर बने हुए हैं । धर्म समन्वय की कितनी गहरी बात है कि इन मन्दिरों के पुजारी परम्परागत रूप से भोजक जाति के हिन्दू ब्राह्मण ही हुआ करते हैं । हिन्दू देवालयों में जब जैनों के प्राराध्य देवों की प्रतिमायें स्थापित की गयीं तो जैन मन्दिरों में भी हिन्दू धर्म के देवताओं की मूर्तियां विराजमान की गयी थीं । मन्दिरों की भीतों एवं छतों पर कहीं-कहीं कृष्ण लीलायें यदि ग्राकीर्ण हैं |
जैन श्राचार्यो ने न सिर्फ अपने धर्म के प्रसार के लिए ही कार्य किया, अपितु यहां की हिन्दू संस्कृति के सवर्द्धन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है । जैसलमेर के सात सुप्रसिद्ध ज्ञान भण्डारों में संग्रहीत हस्तलिखित एवं ताड़ पत्रीय ग्रन्थों के अव लोकन से ज्ञात होता है कि जैनाचार्यों ने हिन्दू धर्म विषयक अन्यान्य ग्रन्थों की संरचना को थी तथा विसरे लोक साहित्य को लिपिवद्ध भी किया था ।'
१--जैन जगत Train पृष्ठ २०७ पोत्तम गाणी
-