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( १४०. ) निर्मित प्रमुखतः जैन मंदिर ही आज के प्रचार अर्थो में हम मान लें, तो गणेश की मूर्ति के प्रति यह अटूट श्रद्धा हमारी प्राचीनतम एकत्व की साक्षी होगी।
और फिर आज की ही धार्मिक व्यवस्था को लें, तो क्या गणेश निर्विवाद रूप से जैन और सनातनी अन्य धर्मावलम्बियों के समान पूज्य नहीं हैं । किसी भी परम्परा का व्यवहारिक निर्वाह ही उसकी जीवन्तता का साक्षी होता है । जैनियों में विनायक जी के नाम से मंगलकायों में सर्वप्रथम पूजे जाने वाले ग्रादिदेव गणेश जी को क्या समान रूप से ऋद्धि-सिद्धि देने वाले देवता का प्रतीक नहीं माना जाता।
लोक रूढ़ियों की प्राड़ में इस तरह प्राचीन धर्म और उस की समन्वित सांस्कृतिक चेतना को विभाजित कर देखने वालों. को शायद वह हमेशा ध्यान में रखना चाहिये कि रूढ़ियां सिर्फ परिवेशगत तथा परिस्थितियों के आधार पर ही प्रभावशील और परिवर्तित नहीं होतीं, उनके पीछे व्यक्ति की श्रद्धा और भावना की समन्वित पृष्ठ भूमि हुआ करती है ।
पुरलिए से १३ मील की दूरी पर पौतमा एक गांव है, वहां जैन मूर्तियों को ब्रह्म और विष्णु मूर्ति मान कर पूजा जाता है । वहीं शिव मन्दिर में सामने की दीवाल में विशाल बालों में खड़ी हुई दो मनोन मूर्तियां हैं, जिनके चारों ओर २४ तीर्थकरों की स्पष्ट खड़गासन मूर्तियां हैं, यक्षयक्षिणी हैं और चरणों में बैल व गेंडा का चिन्ह बना है।
दुर्गा मन्दिर में जिस मूर्ति को भगवान विष्णु के नाम से पूजा जाता है । वह मूर्ति भगवान आदिनाथ की है, जिसके चारों
और चोवीस तीर्थकरों की मूर्तियां हैं । चरणों में बैलों का स्पष्ट चिन्ह उभरा हुआ है।