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जैन धर्म के चौबीस तीर्थन्कर
भारतवर्ष के क्षत्रिय राजवंशों में अधिकतर जैन धर्मानुयायी ही थे। वे क्षत्रिय वीर जैन धर्म को अपनी आत्मा का कल्याणकारी धर्म समझते थे। हजारों राजा जैन थे या जो जैन धर्म में दीक्षित हुए थे । जैन धर्म के प्रवर्तक चौबीसों ही तीर्थकर क्षत्रिय थे।
भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक जैन धर्म के चौवीसों तीर्थंकरों का जन्म और निर्वाण उत्तर भारत में ही हुआ है।
१. श्री ऋषभदेव ही जैन धर्म के प्राद्यप्रवर्तक थे और प्रथम तीर्थकर थे। पिता नामिराजा तथा माता का नाम मरुदेवी था। जैन धर्म का प्रारम्भ काल बहुत प्राचीन है, भारतवर्ष में जव आर्यों का आगमन हुआ उस समय भारत में जो द्रविड़ सभ्यता फैली हुई थी, वस्तुतः वह जैन सभ्यता ही थी। इनका वंश इक्ष्वाकुवंश के नाम से प्रसिद्ध हुआ । प्रजा को कृपि, असि, मषी, शिल्प, वाणिज्य और विद्या इन षट्कर्मों से आजीविका करना बतलाया । सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए इन्होंने क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र इस प्रकार तीन वर्गों की स्थापना की । इनके बड़े पुत्र का नाम भ रत था। यही भ रत उस युग में भारतवर्ष के प्रथम चक्रवर्ती राजा हुए। श्री ऋषभदेव भगवान् का पुराणों में भी वर्णन मिलता है । इनका जन्म चैत्र