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जैन और वैष्णव के धर्म परिवर्तन का कारण रहा । और इसके . पीछे निश्चित ही संस्कृति में सम्मिलित होने या उससे बिल्कुल . कट जाने जैसी कोई भ्रामक स्थिति नहीं थी।
समय-समय पर जैन आचार्यों ने हजारों, लाखों अजनों को. जैन बनाया है जिसका उल्लेख जैन ग्रन्थों में मिलता है । जिस के अतिरिक्त जैन धर्म को छोड़ कर वैष्णव धर्म स्वीकार कर · लेने के भी बहुत से उल्लेख जैनेतर साहित्य में उपलब्ध हैं।'
उदाहरणार्थ जमुना वल्लभ रचित 'रसिक भक्त माल' का एक पत्र उद्धृत किया गया है जिसके अनुसार सेठ लक्ष्मी चन्द . जी जैन धर्म छोड़ कर वैष्णव हो गए थे और वृन्दावन में उन्होंने श्री रंगनाथ जी का मन्दिर बनवाया ।२
राजस्थान के कई सन्त-सम्प्रदायों के प्राचार्य , व अनुयायी भी पहले जैन थे फिर किसी जैनेतर संत के सम्पर्क में आने से उनके अनुयायी बन गए, इसके भी कुछ प्रमाण उनके ग्रन्थों में मिलते हैं । रामस्नेही सम्प्रदाय की रेणशाला के प्राचार्य हरखा राम जी को श्रावक जाति का बतलाया गया है। अतः ये नागौर : के सरावगी यानि दिगम्बर जैन ही होने चाहिये 'श्री रामस्नेही : अनुभव आलोक' नामक ग्रन्थ के पृष्ठ १६ में इनका परिचय देते। हुए लिखा है
आचार्य श्री हरखा राम जी महाराज का आविभाव वि० सं० १८०० भाद्रपद कृष्ण द्वादशी के दिन सायं काल नगर नागौर में हुया । आप के पिता विजयराज तथा माता वहाला. देवी थी। आप वश्य वंश में श्रवक जाति के थे। विजेराज जी १४-श्री अगर चन्द जी नाहटाः संमति संदेश-पृ० ३१ २-प्रभुदयाल जी मित्तलः चैतन्यमत और वृज साहित्य-पृ०३६४