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वि० सं० १७७५ में श्री दरयाव महाराज से राम-मन्त्र ग्रहण कर परम श्रद्धालु राम स्नेही भक्त बन गए थे। इनके सबसे छोटे पुत्र हरखा राम जी थे। इसी ग्रन्थ में इस राम सनेही सम्प्रदाय की अनुयायी आभाबाई का परिचय पृष्ठ १२१ में दिया गया है। वह नागौर जिले के डावगांव के निवासी सक्त सिंहोस वाल कोठारी की पुत्री थी, सन्त टेमदास जी के सम्पर्क में आकर उनकी शिष्या हो गई।
राजस्थान के कई राज्यों में कुछ राज्याश्रित जैनी वैष्णव हो गए। कुछ व्यक्तियों ने चमत्कार आदि से आकर्षित होकर जैन धर्म को छोड़ दिया। तारण समाज दिगम्बर जैन का ही अंग है। श्री तारण तरण मंडला चार्य ने इस पंथ को चलाया था इनका जीवन चरित्र उदास्यन श्रावक कालुराम जी जैन मुकाम सेमरखेड़ी द्वारा लिखा गया है। वे अपनी पुस्तिका में लिखते हैं कि श्री तारण स्वामी का जन्म विक्रम सम्वत् १५०५ में हुया था जिन्होंने . ५५:३१६ व्यक्तियों को अपना शिष्य बनाया था जिनको अध्यात्म मार्ग का मर्म बतलाया था जिसमें शिव कुमार, शाह कुमार नरेशों के अलावा भी जो स्वामी जी ने छः संघ बनाए थे उनमें समैया, गौलालारे तथा दुसके इनको तो दिगम्बर मूर्ति पूजकों में से ही सम्बोध थे वाकी तीन संघों में चरणागत यह संघ गहोई वैष्यों को संबोधित कर बनाया (आज भी हजारों घर गहोइयों के वैष्णव धर्म पालते हैं)। शेष दो संघ असहठी और अयोध्या वासियों के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस प्रकार इन छ संघों का गठन किया था। वैष्णव सम्प्रदाय में अव भी असहठी नाम संघ तथा अयोध्या वासी, अवविया आदि आदि जातियां विद्यमान है। . इसीप्रकार अवधा देश में कुमारगुप्त के पुत्र स्कन्धगुप्त के काल में ही