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और बया अन्तर है' क्या वस्तु का इन्द्रियों द्वारा प्रत्यक्षीकरण बिना इन्द्रियों के सीधे आत्मा द्वारा प्रत्यक्षीकरण से एक भिन्न रूप उपस्थित करता है' यह समस्यायें तब अधिक स्पष्ट होगी जब हम प्रत्यक्षा और परोक्ष झानों में माता और शेय का अधिक सूक्ष्म विश्लेष्मा करें।
जैन दार्शनिक प्रत्यक्ष ज्ञान उसे कहते हैं जो सीये आत्मा के द्वारा प्राप्त होता है, जहाँ य को जानने के लिये शाता को इन्द्रियों की मध्यस्थता की आवयकता नहीं होती। प्रत्यक्ष ज्ञान तीन प्रकार का माना गया है -
अवधि ज्ञान
माता जीचा ओय मूर्तिक पदार्थ
मनःपर्यायान ज्ञाता जीचमन।
तैय जीवमन।
কলেঙ্কাল
OTAT (TOHTI आय अनन्तगुण पायुक्त द्रध्य।
यदि प्रत्यक्ष ज्ञान के इत पिकलेडण को देखा जाये तो स्पष्ट होगा कि पाड प्रत्यक्ष शान चूंकि अतीन्द्रियमान है अत: एक ओर तो जैनों के वास्तववाद के दिन है फिर दूसरी तरफ यह विल पुर्णतया प्रत्ययवादी दर्शन के भी अनुरूप नहीं है जहाँ अतीन्द्रिय कान फो आमा का पूर्ण शान माना जाता है क्योंकि प्रत्ययवादी दर्शन तो माता के एप में जीव को नहीं मानता। जैनदर्शन के अनुसार एक तरफ अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष मान में ध विषय तो पता धनती है किन्तु साथ ही यह भी कहा कि प्रत्यक्ष ज्ञान में ETAT और य में कोई भिन्नता नहीं होती । अब हमारे सामने दो पुश्न उपस्थित होते हैं कि क्या अतीन्द्रिय बान में ज्ञान का विषय वस्तु हो सकती है और यदि ज्ञाता और दोय में कोई