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Perception 1 और तर्क | Reasoning 11 को ही ज्ञान के साधन के स्प में मानते हैं तथा किसी भी प्रकार के अतीन्द्रिय ज्ञान को नहीं मानते । जैन दार्शनिक ज्ञान का विषय ज्ञान से स्वतन्त्र मानते हैं इसलिए यथार्थवादी है साथ ही ये यथार्थवाद के साथ सवेदन और तर्क को भी ज्ञान के विश्वसनीय माध्यम के रूम में स्वीकार करते हैं। किन्तु जैन-दर्शन अवधिज्ञान मन:पर्यय ज्ञान और केवलज्ञान के रूप में अतीन्द्रिय ज्ञान को भी स्वीकार करते हैं, सर्वज्ञता पर चल देते हैं और ज्ञान के स्वयुकारकत्व को मानते हैं । यह स्वीकृति जैनदर्शन को रूद्र अर्थ में यथार्थवादी दर्शन से भिन्न कर देती है, तथा प्रत्ययवादी दर्शन के निकट ले आती है । जैसा कि पूर्व विवेचन में स्पष्ट हो चुका है कि निश्चय दृष्टि से गुणी आत्मा और गुण - पदार्थ में एकरूपता है ।
उपर्युक्त विवेचन का अभिप्राय यह भी नहीं है कि जैन-दर्शन अतीन्द्रिय दर्शन | Super nali ralism है। जैन-दर्शन बुद्धिवाद, व्यवहारवाद और सापेक्षतावाद है । अतीन्द्रिय-ज्ञान का अभिप्राय यहाँ किसी प्रकार की यामात कारिक धार्मिक वाक्यों की उपलब्धि की स्थिति से नहीं जोड़ा जा सकता । अतीन्द्रियावाद को supernaturalism को कैसे बौद्धिक Rahional बनाया जा सकता है, यह जैन-दर्शन की उपलब्धि है। आध्यात्मिक अनुभव अगर व्यवहार में उपलब्ध ही किया जा सकता है तो उसको भी ये लोग मानते हैं । सर्वज्ञता की सापेक्षतावादी व्याख्या मानते हैं । ये उपयोग को ज्ञान का लक्षण इसका अभिप्रार मानते हैं । ज्ञानमीमांसा की एक प्रमुख समस्या विषमता की है । है ज्ञान के विषय का ज्ञाता से स्वतन्त्र बाहयजगत में अस्तित्व है या नहीं" क्या विषय की स्वतन्त्र सत्ता है अथवा वह ज्ञाता की मानसिक संरचना पर निर्भर है '
कुछ दार्शनिक जो यह मानते हैं कि विषय स्वयं एक स्वतंत्र सत्ता है उसे afar के shera में वास्तववादी विचारधारा कहा जाता है और जो विषय को मानसिक सूचना मानते हैं वे आदर्शवादी या प्रत्ययवादी दार्शनिक कहे जाते हैं ।