SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 71 पेशान को प्रसंग सायेदा मानते हैं। तात्पर्य है कि यह वस्तु में अनंत गुणों और पायों की कल्पना की गयी है साथ ही पस्तु का लक्षण माना गया हे उत्पाद, व्यय और प्रौपयुक्त होना । वस्तु का जो संवेदन होगा डे वह देवा, काल, दया और भाव सापेक्ष होता है। वास्तु के अनंत गुणों और पयायों की थापना आइन्स्टीन की अनेक आयामों की कल्पना के समान है और प्रसंग-सापेक्षतान की बहुमायामी व्यवस्था के समान है। इस बात को AT TRE प... "किया जा सकता है कि fr पुकार आन्स्टीन मानते हैं कि "बालारामा सिला का क्रम है और अनेक संभाव्य कालक्रमों में से एक कालक्रम को धास्तविक मानना आनुभविक निरी के कारण सापेक्ष है। उसी तरह जैन दानिक भी मानते हैं कि द्रव्य जाद की बाकिा और उसके अवोदका भिन्न-भिन्न हैं। हाँ यह अवश्य कि कहीं-कहीं प्य के प्रतिमा अर्थों में किसी को प्रधान और किसी को गौण मानना पडता है, क्योंकि रेता माने बिना विभिन्न नयाँ रा विभिन्न अर्थों में आबन ऐसे कई लोकLयवहार हैं जिनकी उत्पत्ति नहीं हो सकती 132 जिस वस्तु को एक भाग में देखा उसी को अन्य भाग में नहीं देखा ऐसा रपट व्यवहार लोक में देखा पाई और इस 'ध्यवाहार के कारण ही vharo में विरुद्ध प्रमों का अस्तित्व स्वीकार किया जाता है। देश, काल, पुडा अपेक्षा भेद से एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी धर्म भी रह सकते हैं। जैसा कि पर्व 'विवेचन से स्पष्ट हो चुका है जैनदार्शनिका कहीं भी ऐकान्तिक व्याख्या को स्वीकार नहीं करते । अतः पार पादी होते हुरो भी वे भौतिकवादी प्याख्या पन्न कठिनाई से 7 yin | जैन दार्शनिक इन्द्रिों को पूरी तरह से मौतिक नी गानरो । इन्द्रियों की संरचना की दृष्टि से इनके दो रूप होते हैं। दव्येन्द्रिया और भाषेन्द्रिया । द्रव्येन्द्रिया' 'बिना भानियाँ की सहायता के शान नहीं उपलser कर सकती क्योंकि भापेन्द्रिया इन्द्रियों की
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy