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का तात्पर्य है कि वास्तववाद की समस्या का समाधान विज्ञान के जगत में नहीं होता। जैसा कि प्रो0 आइन्स्टीन का कहना है कि प्रत्यक्ष काता विषयी से स्वतंत्र बाह्य जगत का अस्तित्व समस्यात्मक है। यद्यपि आइन्स्टीन
वर्य भी एक RTE maratीकार करते हैं, जो कि निरीSHAT से काफी हद तक स्व है। उनका मत है कि एक बाध्य जगत में विशाल ओ कि प्रत्यक्षता तिथी से माहे सभी प्राकृतिक विज्ञानों की आधारशिला हे 126 वास्तुनिता की समस्या के उत्तर आइन्स्टीन का सापेक्षता का hिir बहिन महत्वपूर्ण है क्योंकि Martin है कि वस्तु नि तो ध्याच्या प्रकृति अथAT AT के बाद जगत में नहीं की जा सकती 21 'सिधांत द्वारा वस्तु के संप्रत्यय में परिवर्तन हुआ। पहले जो वस्तुओं का एक गुण घा वह अब वस्तुओं के गुण और उनके संदर्भ की व्यवस्थायें बन गया ।28।
सापीता के सिमा ने किया कि मापी गयी लम्बाई और समय का अनाराल निरपेक्ष वैधता नहीं रख लि आकस्मिक तत्व होता है। किसी चूनी गयी विशिष्ट संदर्भ की गया में यह तथ्य कि गतिशील आकार में परिवर्तन होगा भाषा शिवस्या के सापेक्ष होता हे ।29
पर पान्तविकता जो सभी दृश्य पrgi का आधार है स्पष्ट रूप से की पाहु-आयामी व्यवस्था है और हमारी संवेदन-nि TT जितने मायाम जाने गये है उनसे ज्यादा आयाम उरके अपेक्षित हैं 130
स्पष्ट है कि आइन्स्टीन के 7 सादावादी सिनत का आशय यही है कि यामि धान फा लियता से स्वतंत्र है किन्तु शाता निष्क्रिय होकर मान प्राप्त नहीं करता | शान TAT और शेय के बीच एक संबंध पर निर्भर है। 'किन्तु वस्तु पादी इस तथ्य को भूल जाते हैं। जैनदर्शन का पास्तववाद इत अर्थ में आधुनिक है क्योंकि यह सापेक्षतावादी मत से काफी समानता रखता है, क्योंकि