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________________ हमारे ऊपर निर्भर नहीं होती; जब हम सूर्य को देखते हैं यह प्रायः गोल, चमकदार और गर्म है। इस प्रकार की फना जिसे "सूर्य को देखना" कहा जाता है मेरे और उस वस्तु के बीच एक संघ में निहित होती है और जब यह संबंध पाया जाता है, मैं पस्तु का प्रत्यक्षीकरण अथवा संवेदन करता हूँ 122 इस जगह भौतिक विज्ञान हस्तक्षेप करता है और बताता है कि सूर्य उस अर्थ में चमकदार नहीं है जिस अर्थ में बम प्राय: "शब्द" को समझते हैं। इसके अतिरित जब आप अबसूर्य को देखते हैं तो आपके देखने से जो भौतिक वस्तु अनुमित होगी, आ3 मिनट पहले freet | सलिये भौतिक विज्ञान के सूर्य को और हम जो देखते हैं तदात्म्य नहीं कर सकते । किन्तु इतना होने पर भी हम जो देखते है भोलिक सूर्य में किया करने के लिये हमारा मुख्य तक है । आगे रसेल कहते हैं कि हमारे विदन के उपकरणों की भौतिका पद बुध सीमा तक उपेक्षा कर सकता है गया कि इसका रियर रूप में प्रयोग किया जा सकता है जबकि ये वास्तव में स्थिर नहीं है। दृष्टिदोष से हम दो पूर्य देख सकते हैं किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हमने एक गोलशास्त्रीय गत्कार संपन किया है। सूर्य के स्वरूप में यह परिवर्तन मेरे कारण है सूर्य के कारण नहीं । सामान्य अनुभव संविदन में विभिन्नता के आत्मगत स्त्रोतों के भेद के कारण है। एक पौधोर वस्तु सदैव चौकोर ही दिखाई देगी 124 फिर रसेल का किन्तु उन शितों का अभी भी पणत अध्ययन ENT जो कि भो५ .. || T T से अनुमान उवित OTो । उदाहरण के लिये जब बहुत प्यापित सूर्य को देखी है तो यह पिवास करना था कि उनके संवेदनों से बाध्य र सूर्य है और इसलिये नहीं कि परिस्थितियों को निर्धारित करने वाले निगम है जिसमें कि हम यह अनुभव करते हैं, कहतक"सूर्य देख रहे हैं। 25
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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