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________________ 65 है तो संख्या परिमाण, पृथुकाव, संयोग, विभाग आदि स्पी द्रव्य में समवास संबंध में रहने के कारण चाक्षुष होने पर भी परस्पर भिन्न है 110 *यदि दोनों स्वतंत्र हैं तो दोनों में संबंध कैसे होता है कुंदकुंद उदाहरण afer बात को स्पष्ट करते हैं, उनके मत में जैसे चक्षु अपने में रूप का प्रवेश न होने पर भी वस्तु को जानती है वैसे ही ज्ञान बाह्य वस्तुओं का प्रत्यक्ष करता है। उनका मत है कि जिस तरह दूध के बर्तन में रखा हुआ इन्द्रनीलमणि अपनी कांति से दूध के रूप का अभिभत करके उसमें रहता है वैसे ही ज्ञान वस्तु में रहता है। जैसे दूधगत मणि स्वयं सम्पूर्ण दूध में व्याप्त नहीं है फिर भी उसकी काति के कारण सम्पूर्ण दूध नीलवर्ण का दिखाई देता है । इसी प्रकार ज्ञान द्रव्यतः सम्पूर्ण वस्तु में व्याप्त न होते हुये भी अर्थ को जान लेता है । इस तरह आत्मा और वस्तु में संबंध संभव है क्योंकि आत्मा में जानने की क्षमता है और वस्तु में जाने जाने की, आत्मा का लक्ष्य है य और आत्मा का उपयोग | arata or अर्थ है जानने का उपाय || आत्मा में ही ज्ञान की क्रिया होती है, जड़ घर में नहीं, क्योंकि बोध का कारण चेतना है । जिसमें चेतनाशक्ति हो उसी में बोध क्रिया हो सकती है। चेतना शक्ति आत्मा में ही होती है, जड़ में नहीं | 12 अतः आत्मा के अनंत गुणों में उपयोग अर्थात् चित्शक्ति ही ऐसा गुण है जिसके द्वारा आत्मा को जति किया जा सकता है । यह चैतन्य शक्ति जब वा वस्तुओं के स्वरूप को जानती है तब उस साकार अवस्था में ज्ञान कहलाती यह चैतन्य शक्ति बाह्य पदार्थों में न रहकर मात्र चैतन्य स्थ, स्वस्थरहती है गिरती है। अर्थात् चैतन्यशक्ति की धाकार अवस्था उसके कान की अवस्था है और उसकी चैतन्याकार अवस्था उसके दर्शन की अवस्था है । तात्पर्य है कि चैतन्य की एक धारा है जो अनादि,
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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