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है । सहज टेलीपैथी वह है जहाँ असाधारण विचारों और भावनाओं का अकस्मात् बिना किसी पूर्व आशा के एकाएक ग्रहण होता है । जहाँ पूर्ण नियंत्रित परिस्थिति मैं सामान्य चेतन स्थिति में समीप में या दूर में टेलीपैथी पर प्रयोग किये गये,
काल्पनिक कायें, भावनायें, अनुभव, विचार सफतापूर्वक एक मस्तिष्क रा प्रेषित और दूसरे मस्तिष्क ारा ग्रहण किये गये, वह प्रायोगिक टेलीपैथी है 154
अन्यत्र यदि पात्रचात्य अतीन्द्रियगोधकताओं के साँझको मैट्री 1 Psychometry $ नामक अतीन्द्रिय ज्ञान शाखा पर कुछ विचार किया जाये तो उसकी कुछ सीमा तक केवलज्ञान से समानता प्रतीत होती है 155
तात्पर्य है कि अंतिम रूप में पदार्थ कोई ऐसी सरता है जो अपने हाय 'म से उच्च है, महान है । ऐन्द्रिय और गन के संबंध इससे स्थापित होने पर यह ऐन्द्रिय पदार्थ के स्व में उपस्थित होता है, पास्तविक पदार्थ के रूप में नहीं । पदार्थों के मूल रूप का वट जगत् इन्द्रियगन्य देशकाल के आयामों से परे है। संभवतः इसे ही फोटो ने "प्रत्ययों का जगत" और काटे ने "परमार्थ जगत" कहा था । अतीन्द्रिय ज्ञान देशकाल और वस्तु से सीमित नहीं है, यह वस्तुओं के उन गुणों को जानता है जो ऐन्द्रिय साधनों द्वारा नहीं जाने जा सकते ।