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अवस्था है जो जानता तो है परन्तु जिसे या तो उसके 'विष्य में कुछ बताना नहीं चाहिये या फिर यह कि वह धाता नहीं पाता । आज का वैज्ञानिक सूप्ति की अणिमा से ही आतंपित होकर रहस्य की भाषा बोलने के लिए विवश है। उसकी स्थिति छांदोग्य उपानिबद के प्रवेतकेतु की याद दिलाती है जिसके गुर आणि ने उससे वटा के फल के दाने तोड़कर कहा था, श्वेतकेतु यह अगिमा ही सब कुछ है, तू भी बसी का प्रतिस्प है। कहीं किसी गहरे अपह स्तर पर प्रहमाई का एक एक खंड पूर्ण है 152
मूक
स्पष्ट है कि भौतिक विज्ञान जिस ऐन्द्रिय प्रत्यक्षा पर आधारित है, वह भौतिक विज्ञान भी अब तक पदार्थ को वास्तविक स्वरूप को नहीं जान सकता है। पदार्थों का सूक्ष्म विलेजण करते करते वै पदार्थों से परमागुणों और परमाणुणों से वित तरंगों तक पहुंचे हैं फिर भी पदार्थ के स्म तक नहीं पहुंच पाये हैं। चैन दर्शन के अनुसार तो स्वरूप को ऐन्द्रिय ज्ञान ATT जाना ही नहीं जा सकता। मात्र ऐन्द्रिय ज्ञान के आधार पर वस्तु के यथा रुप को कभी भी नहीं जाना जा सकता ।
पही कारण है कि पाश्चात्य देशानिक आज निरन्तर चेतना के नवीन आयामों की खोजकर रहे हैं। मनोविमान, परामनोविज्ञान अतीन्द्रिय के रहस्यों को सुलझाने का प्रयत्न कर रहा है। पाचात्य जगत में इस अतीन्द्रिप-बोध क्षमता पर शोध करने वाले विद्वानों ने त बोम-दमिता के लिए कई शब्दों का प्रयोग किया। प्रो० रिचटे ने किषधी तिस | crypure.sis शाद इसके लिए 'दिया तो प्रो0 मार्श ने टेलीपैथी ! Tela.pbihy | पद दिया | प्रो० सहन
Hair TTC a second sight te were arribar a clairvoyance Frente का प्रयोग किया।
टेलीपैथी का अर्थ है
ऐन्द्रिय संवेदनों के अतिरिक्त, अन्य साधनों