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________________ इस बात को इस प्रकार से और स्पष्ट किया जा सकता है, जो मनुष्य चटज्ञान के द्वारा पट को जानता है यह साथ ही साथ चटकान के स्वरूप का भी संवेदन कर ही लेता है, क्योंकि ज्ञान स्वप्रकाशी होता है । इस प्रकार जो व्यक्ति घट को जानने की शक्ति रखने वाले पटान का स्वल्प यथावत् जान लेता है वह घट को जानने के साथ ही अनंतयों को जानने की शक्ति रखने वाले पूर्णहान स्वरूप आत्मा को जान लेता है तथा इस शक्तियों के उपयोगभूत अनंत पदार्थों को जान लेता है। 48 49 कुंदकुंद कहते हैं, ज्ञान आत्मा का अनिवार्य स्वभाव है । व्यवहार किन्तु निश्चयदृष्टि से यह सबसे 50 हृदि ते केवली सम्पूर्ण जगत को जानता है । free faर्फ अपनी आत्मा को जानता है | 51 चेतना - परामनोविज्ञान एवं चैन मत : • vide fards, cats, noạch grey sung berharian menje dette vede यह चर्चा त अपूर्ण रहती है जब तक इस अतीन्द्रिय बोधमता पर पाश्चात्य विचारधारा का भी कुछ उल्लेख न किया जाये । भौतिकवादी, वस्तुवादी और प्रत्यवादी कहे जाने वाले पापचात्य जगत में आज भौतिकवाद, वत्तुवाद और प्रत्यक्षवाद का मूल्यांकन किया जा रहा है। इन्द्रिय-मन सीमित भौतिकवादी दुष्टिकोण और भौतिक विज्ञान की सर्वोच्चता में आत्यन्तिक आस्था दोनों ही पीछे छूट रहे हैं। विज्ञान का अनिधार्यता का सिद्धान्त Theory of Indeterminism उस दिशा की ओर संकेत करता है, जहां कुछ भी निश्चितरूपसे भविष्यवाणी नहीं की जा सकती । विज्ञान केत्र में आइन्स्टीन, हेनरी, पियत, मैक्स प्लैंक लेनार्ड, हाइजनबर्ग आदि कुछ नाम ऐसे हैं जिनके निकों ने एक ऐसी स्थिति को जन्म दिया है जहाँ निर्णय भी एक नियम बन गया है। प्रिन्सटन युनिवर्सिटी के जान व्हीलर ने कहा कि ब्रहमोडका "होना" सिर्फ तटस्थ भाव से देखते रहने के अलावा और कोई चारा नहीं, तो संभवतः वह ऐसे व्यक्ति की
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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