________________
आन्तरिक सामग्री की विविधता है । इस सामग्री की विभिन्नता के कारण एक ही आत्मा में भिन्न-भिन्न समय में विभिन्न बोधक्रियायें होती हैं तथा अनेक आत्मायें एक ही समय में भिन्न-भिन्न बोध करती 1 यह बोध की विविधता अनुभवगम्य है ।
केवलज्ञान सामान्य ज्ञान है। इसी सामान्य-दान के आवरण भेद से 5 भेद हैं । जैनदापीनिकों की इस परिकल्पना के अनुसार, केवलज्ञानावरण ज्ञान सामान्य को पूरी तरह ढक लेता है फिर भी उससे टुट्यों को जानने वाली ज्ञानकर निकलती रहती है। इन्हीं ज्ञानकरणों के ऊपर त्र आवरण काम करते हैं । इन्हीं अन्य आवरणों की क्षयोपशम की मात्रानुसार शेष ज्ञान प्रकट होते हैं । वीरसेन के अनुसार जिस प्रकार धारद्रव्य से अग्नि को पूरी तरह क लेने पर भी उससे भाप निकलती रहती है उसी तरह ज्ञान पर आवरण पड़ते हैं, फिर भी ज्ञान का एक अंश जिले यदि वह भी आवृत्त हो जायेगा तो
ज्ञान कहते हैं सदा अनावृत्त रहता है । जीव अजीव हो जायेगा 117
इसी विचार को और स्पष्ट करते हुए नन्दीसूत्र में कहा गया है कि जिल सन से आच्छन्न होने पर भी सूर्य और चन्द्र की प्रभा कुछ न कुछ आती डी एहती है । fantha near a Taायें पर दिन और रात का विभाग तथा रात्रि में शुक्ल और कृष्ण पक्ष का विभाग बना रहता है । उसी प्रकार ज्ञानावरण कर्म से ज्ञान का अच्छी तरह आवरण हो जाने पर भी ज्ञान की प्रभा अपने प्रकाश स्वरूप के कारण बराबर प्रकट होती रहती है। इसी मन्द्र प्रभा के मक्ति, शु, अवधि और मन:पर्यय ये चार भेद योग्यता और आवरण के कारण हो जाते हैं । here or वा भाग, जो अक्षर के अनन्त भाग के नाम से प्रसिद्ध है तदा
अनावृत्त बहता है ।
चेतना
पाश्चात्य मनोविज्ञान
वस्तुतः मानव दिखाई देने वाली रोलमा से बहुत अधिक है । चेतना का