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सम्पूर्ण या वेतना अपने सम्पूर्ण रम में हमें बदिखाई नहीं देती । चना के अनन्त पहलू हैं, चेतना का अत्यन्ना विस्तृत है। यही कारण है कि चेतना को मना , आत्मा और व्यक्तित्व का पर्याय नहीं माना जा सकता । मानवीय आत्मा का केवल दृष्टिगोचर चेतन पहलू ही सम्पूर्ण जात्मा की वास्तविकता का उदघाटक नहीं होता| हमारे मन की बाई गालि शुधियों का रहस्य "सिफ मनात सी चैन पहलू के आधार पर नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि आधुनिक मनोविज्ञान आत्मा के इस दृष्य चेतन पहले के अतिfree अचेतन और harन पहलुओं का ऑसत्य भी मानता है। प्रसि मनोवैज्ञानिक TO सिगमंड फ्राय के मत में मास का बहुत भाग अचेतन है और न अचेतन पहा को मनुष्य के व्यक्ति की अनेक जटिलताओं का हा माना जा सकता है ।18 अचान पवन में प्राय के मत में मनुष्य के व्यक्तित्व का एहस्य पिा है। चेतन मन में वही कुछ आता है जिसकी वार्तमान में व्यक्ति को आवश्यता होती है। बाकी लत तुम अचेतन मस्तिष्क में पड़ा रहता है। हमारे सामान्य अनुभा में भी कभी-कभी यह दिखाई पक्षता है कि रात्रि में सोते समय मन में कोई जटिल गुत्थी होती है किन्तु सोकर उने पर उसका कोई हल हमें सूाता है | tी पुकार सोते समय हम एक 'निश्चित समय उठने का संपाय करके तोते हैं और सामान्यतः उत्त निश्चित समय नींद खुल जाती है | सका कारण अचेतन मस्तिक में ही खोजा जा सकता है। प्रख्यात भारतीय गणिती रामानुज का यह व्यक्तिगत अनुभव था। उनका कहना था कि गणित का कोई अटिल प्रश्न जिला न उन्हें नहीं सुला था, प्रायः उसी विष्य में चिन्तन करते-करते में सो जाया करते थे तथा प्रातः उठने पर उस पान का हल उन्हें सूजाया करता था | फ्रायड ने भी इसी प्रकार का विशाल पट किया है 119
जब आइन्स्टीन से उनकी शृजनात्मक प्रक्रिया का रहस्य HIT गया तो उन्होंने उत्तर दिया कि विप्नावस्था और सुपावरा में एक ऐसी शिति ती है जब एक लम्बी लागसी लगाकर शोध के उच्चतर तर तक पहुंच जाती है। संसार के अधिकारी यानि आधिकारी स्थिति में संभ 120