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________________ प्रत्येक शब्द का एक व्युत्पत्तिसिद्ध अर्थ होता है किन्तु व्यवहार में सदैव इस अर्थ का प्रयोग नहीं होता । फलतः भिन्न-भिन्न शब्द व्यवहारों के कारण विरोधी अर्थ उपस्थित होते हैं । यह निदेश का उद्देश्य उन सभी अर्थों को समझना और अभिप्रेत अर्थ का छान कराना है । जैसा कि विटेगन्स्टाइन कहते हैं कि यदि हम किसी प्रतिज्ञप्ति # proposhon 1 को समझ लें तो यह किस स्थिति को प्रकट करती है । भी समझा जा सकता है 146 अतः इस विषय में जैनदार्शनिकों और तार्किक भाववादियों में समानता है कि दोनों भाषा और ज्ञान में घनिष्ठ संबंध मानते हैं 147 सामान्य भाषा को त्रुटियुक्त पाते हैं तथा स्वीकार करते हैं कि स्पष्ट भाषा ही तत्व-निल्पण कर सकती है । -----: 0:
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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