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बनाये तब बान knous tadge होगा। अधात जब तक सत्यविश्वास I Tme Bellip पू र्णप से प्रमाणित narity न किया जा सके ज्ञान | Knowledge I नहीं कहा जा सकता 16
अन्त में निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता डै कि विश्वास Belap | और शान I knowledge I में सत्यापन के दृष्टिकोण से अन्तर है। प्रमाणित confirmed gitt
pustified Belief i gatos है । ज्ञान शुर में नय विश्वास के रूप में ही होता है क्योंकि कोई भी मान उत्पन्न होते ही प्रमाण नहीं हो पाता किन्तु यह नय प्रमाण नहीं कहा जा सकता जब तक कि सत्यापित न हो जाये ।
जैन दर्शन का मौलिक तत्व सापेक्षता का सिद्धान्त है । व्यवहारवादी और सापेक्षतावादी जैन दार्शनिक वस्तु-शान, पाद, अर्थ और व्यवहार प्रत्येक स्तर पर अपेक्षानों, आदेशों और दृष्टियों के सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं। स्यादवाद, अनेकान्तवाद, नयबाद और निक्षेपवाद इसी श्रृंखला की काहिया है। जैनदाशनिकों ने निक्षेपतत्व को भी नयों की तरह विकसित किया है।
__ निपवाद भाषा' का लाभ है। नय अनेक रवभाववाली वस्तु की शाता के अभिप्राय के अनुसार प्रतीति है। नय माता के अभिमाय से एक धर्म की मुखगता से पस्तु को ग्रहण करता है । इरा नयात्मक धान की भाषाई अभिव्यक्ति ही निम योजना है। निक्षम योजना नगारमा जान की भाषाई अभिव्यक्ति में सापेक्षता कीशोतक है। उसी सापेक्षता की जो जो जैनदर्शन के समस्त सिद्वानों में व्याप्त है। निक्षेपवाद नथवाद की अनिवार्य परिणति है।
वस्तुतः प्रयोग में विभिन्न शब्द व्यवहारों के कारण जो विरोधी अर्थ उपस्थित होते हैं उन विरोधी अर्थ को समझते हुये अपने अभीट अर्ध को उपस्थित करना ही निक्षेप-योजना का आधार है ।