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यहाँ यह दिखाने का स्पष्ट प्रयास किया गया है कि ऐकान्तिक आग्रह अथवा विश्वास ज्ञान के स्तर पर भी हो सकता है और उसकी अभिव्यक्ति के स्तर पर भी उसी प्रकार हो सकता है। अभिव्यक्ति का संबंध शब्द से है अतः जैनता किंकों ने बताने का प्रयास किया कि शब्दों के उचित अर्थ को अथवा वक्ता के अभीष्ट अर्थ को न समझना भियात्व अथवा ऐकान्तिक आग्रह का कारण है । इसी मिधात्व के निराकरण का कार्य जो कि शब्द प्रयोग से सम्बन्धित है निर्दोष योजना का आधार है । निक्षेप का अर्थ है अर्थ निरूपण पद्धति ।
जैन दार्शनिकों ने शब्दों के प्रयोगों को चार प्रकार के अथों में बाँटा है। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव 137 प्रत्येक शब्द का एक व्युत्पत्तिमूलक अ होता है किन्तु कुछ शब्दों का प्रयोग इस व्युत्पत्तिमूलक अर्थ में न करके नाम arataये किया जाता है । यह नाम निक्षेप है । उदाहरण के लिये इन्द्र शब्द का प्रयोग व्युत्पत्तिमूलक अर्थ में नहीं किन्तु नाममात्र का निर्देश करने के लिये हुआ है ।
इसी प्रकार जब इन्द्र की मूर्ति को इन्द्र कहा जाता है तो यह शब्द प्रयोग का अभिप्राय है कि वह मूर्ति इन्द्र का प्रतिनिधित्व करती है, यह स्थापना निक्षेप है ।
इसी प्रकार द्रव्य निक्षेप का विषय द्रव्य है अर्थात् जहाँ "किसी द्रव्य के परिवर्तनशील भविष्य, भूत और वर्तमान पचायों को ध्यान में रखते हुये जो avartta शब्द प्रयोग करते हैं वह द्रव्य निक्षेष है ।
इसी प्रकार किसी शब्द का उसके व्युत्पत्ति सिद्ध अर्थ में प्रयोग करना भाव निदेश है
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अतः स्पष्ट है कि निर्दोष योजना के पीछे भी जैन दार्शनिकों का अनेकांतवादी दृष्टिकोण ही है । वस्तु और भाषा में अनिवार्य संबंध है । जैनमत में अनेक