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________________ .. 98 "मंगल ग्रह पर जीवन है" यह स्वीकृतियोग्य IAcceptedake करन आवश्यक नहीं है कि तार्किक संदेश के परे | Beyond Reserable Deulaks भी हों। यपि ऐसा हो भी सकता है किन्तु आवश्यक नहीं है कि ऐसा हो ही। अत: यथापि इस कथन को मानना या न मानना kothhekai करना इन पर विश्वास करने की अपेक्षा अधिक तार्किक नहीं है किन्तु साथ ही यह भी मत्य है कि इनको स्वीकार कर लेना भी इनको न मानने bahnstd1 से अधिक तार्किक नहीं है। अतः कोई भी कधन मात्र स्वीकृत्तियोग्य Acceplalele | टोने से प्रमाण नहीं हो सकते । अब उन कचनों की स्थिति क्या होगी जो स्वीतियोग्य । और तार्किक सैदेह से परे IBarend. Reserade Doubt | दोनों हैं क्योंकि कुछ कटान ऐसे हैं जो स्वीकृतियोग्य IAcceptable हैं और ताजिक संदेड के परे भी है तो भी क्या ऐसे कयनों को निश्चित ज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता है। उदाहरण के लिये, मंगलगह पर जीवन है यह कथन स्वीकृतियोग्य Acceptable भी हैं और तार्किक सदैव से परे | Beyerd- Reasonabu Denis | भी किन्तु यह निश्चित मान नहीं है। जैसा कि अभी अपर स्पस्ट हो चुका है बस कथन पर विश्वास करना इस कथन को न मानने | Chhed से अधिक उचित है क्योंकि कधन हमारे जाने बिना भी सत्य हो सकते हैं 'किन्तु बानगीमाता की दृष्टि से इसे पूर्णतया निश्चित | Alossuntally cerauul कहना इसके विषय में पर्याप्त से अधिक कथन है ।। स बात को एक और उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। जब तक चन्द्रमा पर मनुष्य नहीं पहुंचा था तब तक यह कथन कि "चन्द्रमा पर जीवन है और इसका विरोधी कामन "चन्द्रमा पर जीवन नहीं है प्राक्कलानाओं के व्य में संभाव्य सत्य आधुनिक दर्शन की भाषा में स्वीकृतियोग्य I Acceptable ft W or f ile or Beyond Reasonable Doubt i
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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