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अतः स्पष्ट है कि विश्वास चाहे भौतिक क्षेत्र से संबंधित हों अथवा शुद्ध वैचारिक क्षेत्र से विश्वासों के असत्य होने की संभावना होती है इसलिए विश्वासों को स्थापित किये बिना ज्ञान नहीं माना जा सकता 128
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किती कथन पर विश्वास करना उस पर अविश्वास करने या उसको न अधिक उचित है जब तक कि उसके विजय में कोई तर्कयुक्त 'प्रमाण न हो 29 । यहाँ पर भी सत्यापन का प्रश्न उपस्थित हो जाता है । नय और प्रमाण के मूल में यही सत्यापन का प्रश्न ही है । प्रमाणज्ञान सत्यापित नयविवचाता है ।
संदेह न हो या उसके पद
ज्ञानमाता के आधुनिकतम रूप का प्रतिनिधित्व करने वाले chfoem की भाषा में इस समस्या को इस प्रकार रखेंगे। कोई भी कथन जिस पर कोई व्यक्ति विश्वास करता है उसके लिए स्वीकृति योग्य | Acceptable होगें । नय विशिष्ट व्यक्ति के लिए स्वीकृतियोग्य : Acceptable है किन्तु ये वीकृतियोग्य | Acceptable कथन क्या ज्ञानमीगासीय दृष्टि से तार्किक सदैव के परे भी होगे तार्किक संदेह से परे । Beyond Reasonable Doulot पद का स्वीकृतियोग्य Acceptable | पर से अधिक ज्ञानमीमाशीय महत्व
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उदाहरण के लिए, यह कहना कि मंगल-गृह में जीवन है, यह कथन एक प्राक्कल्पना, एक विश्वास के रूप में स्वीकृतियोग्य | Acceptalole हो सकता है किन्तु ज्ञानमीमासीय दृष्टि से इसे ज्ञान की कोटि में तब तक नहीं रखा जा सकता जब तक कि इसे तार्किक दृष्टि से प्रमाणित न कर दिया जाये ।
मंगल ग्रह पर जीवन है और मंगलग्रह में जीवन नहीं है यह दोनों ही कथन स्वीकृतियोग्य eplace हैं क्योंकि दोनों के पक्ष या विपक्ष में कोई प्रमाण नहीं दिया जा सका है। जैन दृष्टि में ये अपेक्षा भेद से सत्य है ही ।