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________________ को "प्रत्यक्षीकृत दृष्टिकोण" | Perceived Perspective | कहते हैं । प्रत्यक्षीकृत और अप्रत्यक्षीकृत अनंत पक्षों वाले इस जगत को रसेल system of Perspechnic कहते हैं । " प्रत्यक्षीकरण कर रहे हैं वह वस्तु का एक पक्ष प्रत्येक पक्ष वास्तविक है । जैनों का नय इस समय हम जिस वस्तु का है जो पक्षों के समूह का एक अंग हैं। से यही तात्पर्य है जो रसेल का Perspective से है । किन्तु रसेल का भौतिक वस्तुजगत विषयक विचार अनिश्चित और अस्पष्ट प्रतीत होता है वहीं जैन दर्शन में भौतिक जगत के वास्तविक अस्तित्व के विषय में कोई संदेह नहीं है । रसेल का कथन है कि वस्तु के सभी पक्ष वास्तविक है किन्तु वस्तु विभिन्न इन्द्रिय प्रदत्तों द्वारा निर्मित मात्र तार्किक संरचना है जो विभिन्न दृष्टिकोणों | Perspective I में प्रस्तुत होता है । इसका तो तात्पर्य होगा वस्तु जगत आत्मनिष्ठ अथवा कल्पनात्मक होना । किन्तु रसेल इसे स्वीकार नहीं करना चाहते और कहते हैं कि भौतिक जगत का यपि अपना कोई स्वतंत्र नहीं है किन्तु उनके अस्तित्व के विलय में संदेह नहीं किया जा सकता 110 किन्तु जैन दर्शन मैं "नव" ज्ञान की जो वस्तु के एक पक्ष का ज्ञान है वास्तविक माना है वहीं अनंतधर्मात्मक वस्तु का भी वास्तविक अस्तित्व माना है जो प्रमाण ज्ञान का विषय है । 3 नय और प्रमाण का संबंध : अब एक प्रश्न उडता है कि जैन दार्शनिक वस्तु का ज्ञान नय और प्रमाण दोनों के द्वारा मानते हैं, तो नय और प्रमाण ज्ञान में क्या संबंध है जैन दार्शनिक BF face पर पर्याप्त विचार करते हैं * ## 121 प्रमाण से जानी हुई वस्तु के द्रव्य अथवा पथाय में वस्तु के निश्चय करने को "नय" कहते हैं । ॥ प्रमाण से ग्रहण किये गये पदार्थ के एक देश में वस्तु का निश्चय करने वाले
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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