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________________ . .90 131 शान को "नय" कहते हैं 112 विधि प्रतिबंधात्मक पदार्थ प्रमाण का 'विष्य है। तथा प्रमाग के विषय में से किसी एक धर्म को मुख्य और दूसरे को गौण करके मुख्य धर्म के नियमन में जो हेतु के वक्ष नय है । भय प्रमाण के द्वारा जाने हुए पदार्थ के एक अंश रूप में ज्ञान में माता की विशिष्ट मानसिक प्रवृत्ति को कहते हैं। नय में वस्तु के शेष अंशों का निय नहीं किया जाता उनकी उपेक्षा उस समय कर दी जाती है । प्रमाण पूर्ण पस् को गहण करके सभी प्रमों के समुध्यय स्म वस्तु को जानता है और प्रमाण द्वारा गृहीत पदार्थ के एक देशा में निश्चय कराने वाले भान को नय कहते हैं 14 नय धाभिद से परतु को ग्रहण करता है किन्तु पन्तु एक धर्मस्य ही नहीं है, उसमें तो अनेकों of हैं इसलिए सभी नय सापेक्ष अवस्था में ही सत्य होते हैं। आचार्य का धन है कि अनेक स्वभावों से, परिपूर्ण वस्तु को प्रमाण के द्वारा ग्रहण करके तत्पश्चात् एकान्तवाद का नाम करने के लिए मयों की योजना करनी चाहिये ।। जीवा दि ज्ञात तत्वों का ज्ञान दो प्रकार से होता है - एक देवा से और संदिशा से । प्रमाण के सारा सदिश से मान टोता है और नयों के द्वारा एक देश से ज्ञान 16 सम्यक् प्रकार के अर्थ 'निर्णय करने को प्रमाण कहते हैं 117 प्रमाण सदनिय स्प होता है। नय वाक्यों में स्यात् लगाकर बोलने को प्रमाण कहते हैं। 151 171 उपर्युक्त मतों से एक सामान्य निकाय निकलता है कि प्रमाण पूर्ण वस्तु का कान है और उसी वस्तु के एक अंश का ज्ञान नय है । लेकिन यदि ऐसा है तो नय को प्रमाण में शामिल कर लेना चाहिये ; मय को अलग से उल्लेख करने की क्या आवश्यकता है।
SR No.010238
Book TitleJain Gyan Mimansa aur Samakalin Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlpana Agrawal
PublisherIlahabad University
Publication Year1987
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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