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________________ प्रस्तावना का नाम सोमदेव था, जो संभरी नरेंद्र कर्णदेव के मंत्री थे। कवि ने साह वासाधर को सम्यक्त्वी, जिन चरणों के भक्त जिनधर्म के पालन में तत्पर, दयालु, बहु-लोकमित्र, मिथ्यात्व रहित और विशुद्ध चित्त वाला बतलाया है। साथ ही आवश्यक दैनिक षट्कर्मों में प्रवीण, राजनीति में चतुर और अष्टमूल गुणों के पालन में तत्पर प्रकट किया है। इनकी पत्नी का नाम उभयश्री था, जो पतिव्रता और शीलव्रत का पालन करने वाली तथा चतुर्विध संघ के लिए कल्पनिधि थी। इनके पाठ पुत्र थे, जसपाल, जयपाल, रतपाल, चंद्रपाल, विहराज, पुण्यपाल, वाहड़ और रूपदेव। ये सभी पुत्र अपने पिता के समान ही सुयोग्य चतुर और धर्मात्मा थे। इन आठ पुत्रों के साथ साहु वासाधर अपने धर्म का साधन करते थे। ___ इस यंत्र में कवि ने अपने से पूर्व होने वाले कुछ खास विद्वानों का और उनकी कुछ प्रसिद्ध कृतियों के नामोल्लेख के साथ उल्लेख किया है। जैसे कवि चक्रवर्ती धीरसेन, जैनेन्द्र व्याकरणकर्ता देवनंदी (पूज्यपाद) श्री वज्रसूरि और उनके द्वारा रचित षदर्शन प्रमाण ग्रंथ, महासेन सुलोचनाचरित, रविषेरण-पद्मचरित, जिनसेन हरिवंशपुराण, मुनिजटिल वरांगचरित, दिनकरसेन कंदर्पचरित, पद्मसेन-पार्श्वनाथचरित, अमताराधना गरिण अम्बसेन, चंद्रप्रभचरित, धनदत्तचरित, कवि विष्णुसेन, मुनिसिंहनंदि-अनुप्रेक्षा, वकार मंत्र-नरदेव, कवि असग-वीरचरित, सिद्धसेन, कवि गोविंद, जयधवल, शालिभद्र, चतुर्मुख, द्रोण, स्वयंभू, पुष्पदंत, और सेढु कवि का उल्लेख किया गया है। कवि परिचय कवि धनपाल गुजरात देश के मध्य में 'पल्हणपुर'' या पालनपुर के निवासी थे। वहाँ वीसलदेव राज्य करते थे, जो पृथ्वी के मण्डन और सकल उपमानों से युक्त थे। उसी नगर में निर्दोष पुरवाड वंश में, जिसमें अगणित पूर्व पुरुष हो चुके हैं, ‘भोंवइ' नाम के एक राजश्रेष्ठी थे, जो जिन भक्त और दया गुण १. पालनपुर (पल्हणपुर) Palanpur आबू राज्य के परमारवंशी धारावर्ष सं० १२२० (११६३ ई.) से १२७६ ई० सन् १२१६ तक पाबू का राजा धारावर्ष था, जिसके कई लेख मिल चुके हैं। उसके कनिष्ठ भ्राता यशोधवल के पुत्र प्रल्हादन देव (पालनसी) ने अपने नाम पर बसाया था। यह बड़ा वीर योद्धा था और विद्वान भी था। इसी से इसे कवियों ने पालणपुर या पल्हणपुर लिखा है। यह गुजरात देश की राजधानी थी। यहां अनेक राजामों ने शासन किया है। प्राब के शिलालेखों में परमार वंश की उत्पत्ति और माहात्म्य का वर्णन है और प्रह्लादनदेव की प्रशंसा का भी उल्लेख है। जिस समय कुमारपाल शत्रुजयादि तीर्थों की यात्रा को गया, तब प्रह्लादन देव भी साथ में था। पुरातन-प्रबंध संग्रह पृ० ४३) प्रह्लादन देव की प्रशंसा प्रसिद्ध कवि सोमेश्वर ने कीतिकौमुदी में मोर तेजपाल मंत्री द्वारा बनवाए हुए लूणवसही की प्रशस्ति में की है। यह प्रशस्ति वि० सं० १२८७ में प्राबू पर देलवासा गांव के नेमिनाथ मंदिर में लगाई गई थी। मेवाड़ के गुहिल वंशी राजा सामंतसिंह और गुजरात के सोलंकी राजा अजयपाल की लड़ाई में, जिसमें वह घायल हो गया था प्रह्लादन ने बड़ी वीरता से लड़कर गुजरात की रक्षा की थी। प्रस्तुत पालनपुर में दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदाय के लोग रहते थे। धनपाल के पितामह तो वहां के राज्य श्रेष्ठी थे । श्वेताम्बर समाज का तो यह प्रमुख केन्द्र ही था। यहां उनके अनेक ग्रंथ लिपि.किये गए । जिनदत्त सूरि भी वहां रहे हैं।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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