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________________ रचना समय यद्यपि ग्रन्थ में रचनाकाल दिया हुआ नहीं है, फिर भी अन्य प्रमाणों के आधार पर ग्रन्थ का रचना समय बतलाने का प्रयत्न किया जाता है। ग्रंथ प्रशस्ति में 'बम्हणवाड' नगर का वर्णन करते हुए लिखा है कि उस समय वहां रणधोरी या रणधीर का पुत्र बल्लाल था जो अर्णोराजका क्षय करने के लिए कालस्वरूप था और जिसका मांडलिक भृत्य अथवा सामन्त गुहिलवंशीय क्षत्रीय भुल्लण उस समय बम्हरणवाडका शासक था' । परन्तु इस उल्लेख पर से उक्त राजाओं का राज्यकाल ज्ञात नहीं होता । अतः उसे अन्य साधनों से जानने का प्रयत्न किया जाता है। मंत्री तेजपाल के प्राबू के लूणवसति गत सं० १२८७ के लेख में मालवा के राजा बल्लाल को यशोधवल के द्वारा मारे जाने का उल्लेख है । यह यशोधवल विक्रमसिंह का भतीजा था और उसके कैद हो जाने के बाद गही पर बैठा था। यह कमारपाल का मांडलिक सामन्त अथवा भृत्य था, मेरे इस कथन की पुष्टि अचलेश्वर मंदिर के शिलालेख गत निम्न पद्य से भी होती है "तस्मान्मही...."विदितान्यकलत्रपात्र, स्पर्शो यशोधवल इत्यवलम्बते स्म । यो गुर्जरक्षितिपतिप्रतिपक्षमाजौ, बल्लालमालभत मालवमेदिनींद्रम् ॥" यशोधवल का वि० सं० १२०२ (११४५ A.D.) का एक शिलालेख अजरी गांव से मिला है जिसमें 'प्रमारवंशोद्भवमहामण्डलेश्वरश्रीयशोधवलराज्ये' वाक्य द्वारा यशोधवल को परमारवंश का मण्डलेश्वर सूचित किया है । यशोधवल रामदेव का पुत्र था, इसकी रानी का नाम सौभाग्यदेवी था। इसके दो पुत्र थे, जिनमें एक का नाम धारावर्ष और दूसरे का नाम प्रह्लाददेव था। इनमें यशोधवल के बाद राज्य का उत्तराधिकारी धारावर्ष था । वह बहुत ही वीर और प्रतापी था, इसकी प्रशंसा वस्तुपाल-तेजपाल प्रशस्ति के ३६वें पद्य में पाई जाती है ? धारावर्ष का सं० १२२० का एक लेख 'कायद्रा' गांव के बाहर, काशी, विश्वेश्वर के मंदिर से प्राप्त हुआ है । यद्यपि इसकी मृत्यु का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिला, फिर भी उसकी मृत्यु उक्त सं० १२२० के समय तक या उसके अन्तर्गत जानना चाहिये। जब कुमारपाल गुजरात की गद्दी पर बैठा, तब मालवा का राजा बल्लाल, चन्द्रावती का परमाल विक्रमसिंह और सपादलक्ष (सांभर) का चौहान अर्णोराज ये तीनों राजा परस्पर में मिल गये और इन्होंने कुमारपाल के विरुद्ध जबरदस्त प्रतिक्रिया की; परन्तु उनका यह सब प्रयत्न निष्फल हुआ। कुमारपाल ने १. सरि-सर-णंदण-वण-संछण्णउ, मठ-विहार-जिण-भवणरवण्णउ । बम्हणवाडउ णामें पट्टणु, परिणरणाह-सेणदलवट्टणु । जो भुंजइ मरिणखयकालहो, रणधोरियहो सुग्रहो बल्लालहो । जानु भिच्चु दुज्जण-मणसल्लणु, खत्तिउ गुहिल उत्तु जहिं भुल्लणु ॥ -प्रद्युम्नचरित प्रशस्ति । २. यश्चौलुक्यकुमारपालनपतिः प्रत्यर्थितामागतं । मस्वा सत्वरमेव मालवपति बल्लालमालब्धवान् ।। ३. शत्रु श्रेणीगलविदलनोन्निद्रनिस्त्रिशधारो, धारावर्षः समजनि सुतस्तस्य विश्वप्रशस्यः । क्रोधाकान्तप्रधनवसुधा निश्चले यत्र जाता, श्चोतन्नेत्रोत्पलजलकण: कोंकणाधीशपल्यः॥३६॥ ४. देखो, भारत के प्राचीन राजवंण भा०१पृ० ७६-७७ ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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