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प्रस्तावना
यह वंश काष्ठासंघ की एक शाखा है'। इस वंश में अनेक दिगम्बराचार्य और भट्टारक हुए हैं, जैसे जयसेन, गुणाकारसेन, और महासेन तथा सं० १९४५ के दूबकुण्ड वाले शिलालेख में उल्लिखित देवसेन आदि । इससे इस वंश की प्रतिष्ठा का अनुमान किया जा सकता है। इनके पिता का नाम देवदत्त था । यह 'महाकवि' विशेषरण से भूषित थे और सम्यक्त्वादि गुणों से अलंकृत थे । और उन्हें सरस्वति देवी का वर प्राप्त था । उन्होंने पद्धड़िया छन्द में 'वरांग- चरित' का उद्धार किया था । और कविगुरणों को अनुरंजित करने वाली वीर कथा, तथा 'अम्बादेवीचर्चरीरास' नाम की रचना बनाई थी, जो ताल और लय के साथ गाई जाती थी, और जिन चरणों के समीप नृत्य किया जाता था। जैसा कि कवि के निम्न वाक्यों से प्रकट है
"सिरिलाडवग्गुतहिविमलजसु कइदेवयत्तु निव्वुल्यक सु बहुभावहं जे वरंगचरिउ, पद्धडिया बंधे उद्धरिउ । कविगुरण-रस-रंजिय विउससह, वित्त्थारिउ सुद्दयवीरकहा तरिय बंधि विरइउ सरसु, गाइज्जइ संतिउ तारूजसु नञ्चिज्जइ जिरणपयसेवर्याह किउ रासउ अम्बादेवर्याह । सम्मत्त महाभरधुरघरहो, तहो सरसइदेवि लद्धवरहो || "
जस्स कइ-देवयत्तो जरगयो सच्चरियलद्धमाहप्पो । सुहसीलसुद्धवंसो जरणरणी सिरि संतुझा भरिया ॥ ६ ॥ जस्सय पसण्णवयरणा लहुरगो सुमइ ससहोयरा तिणि । सीहल्ल लक्खरका जसइ गामेत्ति विक्खाया ॥ ७ ॥
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कविवर देवदत्त की ये सब कृतियां इस समय अनुपलब्ध हैं, यदि किसी शास्त्र भण्डार में इनके अस्तित्व का पता चल जाय, तो उससे कई ऐतिहासिक गुत्थियों के सुलझने की श्राशा है कविवर देवदत्त की ये सब कृतियाँ सम्भवतः १०५० या इसके आस-पास रची गई होंगी, क्योंकि उनके पुत्र वीर कवि सं० १०७६ के ग्रन्थ में उनका उल्लेख कर रहे हैं । अतः इनकी खोज का प्रयत्न होना चाहिए, सम्भव है प्रयत्न करने पर किसी शास्त्र भण्डार में उपलब्ध हो जायं । वीर कवि की माता का नाम 'सन्तु' अथवा 'सन्तुव' था, जो शीलगुरण से अलंकृत थी । इनके तीन लघु सहोदर और थे जो बड़े ही बुद्धिमान् थे और जिनके नाम 'सीहल्ल' लक्खणंक, और जसई थे, जैसा कि प्रशस्ति के निम्न पद्यों से प्रकट है :
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१. काष्ठासंघ भुविख्यातो जानन्ति नृसुरासुराः । तत्र गच्छाश्चत्वारो राजन्ते विश्रुता क्षितौ ॥ श्रीनन्दितटसंज्ञश्च
माथुराबागडाभिषः । लाड बागड इत्येते विख्याता क्षितिमण्डले ।
चूंकि कविवर वीर का बहुतसा समय राज्यकार्य, धर्म, अर्थ और काम की गोष्ठी में व्यतीत होता था, इसलिए इन्हें इस जम्बूस्वामी चरित नामक ग्रन्थ के निर्माण करने में पूरा एक वर्ष का समय लग गया
- पट्टावली भ० सुरेन्द्रकीर्ति
२. देखो, महासेन प्रद्युम्नचरित प्रशस्ति जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह प्रथम भाग वीरसेवा मन्दिर से प्रकाशित ।
३. बहुरायकज्जधम्मत्थकाम गोट्ठी विहत्तसमयस्य ।
वीरस्स चरियकरणे इक्को संवच्छरो लग्गो ॥ जंबू ० च० प्र०