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________________ बनय प्रशस्ति संग्रह प्रन्प-निर्माण में प्रेरक इस ग्रन्थ की रचना में किनकी प्रेरणा को पाकर कवि प्रवृत्त हुआ है, उसका परिचय ग्रन्थकार ने निम्न रूप से दिया है : ___ मालव देश में धक्कड़ या धर्कट' वंश के तिलक महासूदन के पुत्र तक्खडु श्रेष्ठी रहते थे। यह ग्रन्थकार के पिता महाकवि देवदत्त के परम मित्र थे। इन्होंने ही वीर कवि से जंबू स्वामीचरित के निर्माण करने की प्रेरणा की थी और तक्खडु श्रेठी के कनिष्ठ भ्राता भरत ने उसे अधिक संक्षिप्त और अधिक रूप से न कहकर सामान्य कथा वस्तु को ही कहने का आग्रह अथवा अनुरोध किया था और तक्खडु श्रेठी ने भरत के कथन का सर्थन किया था और इस तरह ग्रन्थकर्ता ने ग्रन्थ बनाने का उद्यम किया। प्रन्यकार इस ग्रन्थ के कर्ता महाकवि वीर हैं, जो विनयशील विद्वान और कवि थे। इनकी चार स्त्रियाँ थीं। जिनवती, पोमावती, लीलावती और जयादेवी तथा नेमचन्द्र नाम का एक पुत्र भी था। महाकवि वीर विद्वान और कवि होने के साथ-साथ गुणग्राही न्याय-प्रिय और समुदार व्यक्ति थे। उनकी गुणग्राहकता का स्पष्ट उल्लेख ग्रन्थ की चतुर्थ सन्धि के प्रारम्भ में पाये जाने वाले निम्न पद्य से मिलता है : प्रगुणा ण मुणंति गुणं गुणिणो न सहति परगुणे दहुँ । वल्लहगुणा वि गुरिणणो विरला कइ वीर-सारिच्छा ।। अर्थात्-"प्रगुण अथवा निर्गुण पुरुष गुणों को नहीं जानता और गुणीजन दूसरे के गुणों को भी नहीं देखते-उन्हें सहन भी नहीं कर सकते, परन्तु वीर-कवि के सदृश कवि विरले हैं, जो दूसरे गुणों को समादर की दृष्टि से देखते हैं।" कवि ने अपनी लघुता व्यक्त करते हुए लिखा है कि-"सुकवित्त करणमणवावडेण" १-३ । इसमें कवि ने अपने को काव्य बनाने के अयोग्य बतलाया है। फिर भी कवि ने अपनी सामर्थ्यानुसार काव्य को सरस और सालंकार बनाने का यत्न किया है और कवि उसमें सफल हुआ है। कवि का वंश और माता-पिता कविवर वीर के पिता गुडखेड देश के निवासी थे और इनका वंश अथवा गोत्र 'लालबागड' था। १. यह वंश १०वी, ११वीं पोर १२वीं शताब्दियों में खूब प्रसिद्ध रहा। इस वंश में दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों ही संप्रदायों की मान्यता वाले लोग थे। दिगम्बर सम्प्रदाय के कई दिगम्बर विद्वान् ग्रन्थकार इस वंश में हुए हैं जैसे भविष्यदत्त पंचमीकथा के कर्ता कवि धनपाल, पोर धर्मपरीक्षा के कर्ता हरिषेण ने अपनी धर्मपरीक्षा वि० सं० १०४४ में बनाकर समाप्त की थी। प्रतः यह धर्कट या धक्कड़ वंश इससे भी प्राचीन जान पड़ता है । देलवाडा के वि० सं० १२८७ के तेजपाल वाले शिलालेख में भी धर्कट या धक्कड़ जाति का उल्लेख है। २. जाया जस्स मणिट्ठा जिणवह पुणो बीया। लीलावइत्ति तइया पच्छिम भज्जा जयादेवी॥८॥ पढमकलत्तं गरुहो संताण कयत्त विडवि पा रोहो । विणयगुणमणिणिहाणो तणमो तह णेमिचन्दोत्ति ॥६॥ -जंबूस्वामीचरित प्रशस्ति
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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