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________________ प्रस्तावना ३९ चउमुंह (चतुर्मुख) जयदेव जल्हिग जिनदत्तसूरि जिनदत्तसूरि जिनपद्मसूरि जिनप्रभसूरि जिनप्रभसूरि जिनप्रभसूर जिनप्रभसूरि जिनभद्र जिनवरदेव तेजपाल त्रिभुवनस्वयंभू दामोदर दामोदर देवचन्द देवदत रयणत्तयविहाण कहा, दहलक्खरणवय कहा, लद्धविहाण कहा, सोलहकारण वयविहि, सुयंधदहमीकहा । (भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित) हो रही है पउमचरिउ, रिट्टणेमिचरिउ, पंचमी कहा (अनुपलब्ध) भावनासंधि (र० सं० १६०६) अनुप्रेक्षारास उपदेस रसायन (सं० ११३२-१२१०) चर्चरी (रास) स्थूलभद्रफाग (सं० १२५७ के आस-पास) मुद्रित अनाथसंधि, अंतरंगरास, अंतरंगविवाह । आत्मसम्बोधनकुलक मोहराजविजय वज्रस्वामिचरिउ (सं० १३१६) सुभाषितकुलक बुद्धिरसायरण संभवनाथचरिउ, वरांगचरिउ (र० सं० १५०७), पार्श्वपुराण पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ पंचमीकहा (विक्रम हवीं शताब्दी का अन्त) मिरणाहचरिउ (र० सं० १२८७) सिरिपालचरिउ, गेमिणाहचरिउ, चंदप्पहचरिउ पासरणाहचरिउ (लिपि० सं० १४६४) वरांगचरिउ, शान्तिनाथपुराण, अंबादेवीरास (अनुपलब्ध) रचनाकाल सं० १०५० के लगभग रोहिणीवयकथा उपदेशकुलिक सुलोयणाचरिउ गयसुकमालरास (सं० १३००) के लगभग भविसदत्तपंचमीकहा (वि० की १०वीं शताब्दी) बाहुबलीचरिउ (र० सं० १४५४) जंबूस्वामि रास (र० सं० १२६६) हरिवंस पुराण (संभवतः विक्रमी ११वीं शताब्दी पउमसिरिचरिउ (मुद्रित) सुदंसणचरिउ, सयलविहिविहाणकव्व (र० सं० ११०० के आस-पास) सिद्धचक्कविहि, जिणरत्तिविहाण कहा (लिपि० सं० १५१२ से पूर्ववर्ती) रविवउकहा, अनन्तवयकहा पासणाहचरिउ (वि० सं०ERE) महापुराण, (वि० सं० १०१६-१०२२) नागकुमारचरिउ, जसहरचरिउ मुद्रित देवनन्दि देवसूरि देवसेन देल्हड धनपाल धनपाल धर्मसूरि धवलकवि घाहिल नयनन्दी नरसेन नेमचन्द पचकोति पुष्पवंत
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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