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मैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह
सन्धि-काव्य एक ही सन्धि में विभक्त होने वाले काव्यों को एक सन्धि काव्य कहा जाता है। अपभ्रंश के खण्ड सन्धि काव्यों की परम्परा केवल श्वेताम्बर सम्प्रदाय में पाई जाती है। किन्तु ये सब परवर्ती काल की रचनायें हैं। इनमें भी जीवन चरित की परम्परा उपलब्ध होती है । उपलब्ध सन्धिकाव्य सं० १२८७ से १४५० तक के रचे हुए हैं ; संभव है इसके बाद भी कुछ रचे गए हों, पर वे अपभ्रंश भाषा के न होकर हिन्दी या राजस्थानी भाषा में ही लिखे गए जान पड़ते हैं। ये सन्धिकाव्य पाटन आदि के जैन शास्त्रभण्डारों से उपलब्ध हुए हैं । उदाहरणार्थ जिनप्रभसूरि ने अनाथ सन्धि सं० १२९७ में, जीवानुसंधी ३१८ पद्यों में और मयण-रेहा-सन्धि १२९७ में बनाई है। वरदत्त ने वज्रस्वामिसन्धि, रत्नप्रभ ने अन्तरंगसन्धि, तथा सं० १२९८ में जिनप्रभ सूरि के शिष्य ने नर्मदासुंदरीसंधि की रचना की है।'
___ अपभ्रंश के सन्धि-काव्यों के सम्बन्ध में विशेष जानने के लिए राजस्थानी पत्रिका में प्रकाशित श्री अगरचन्द नाहटा का 'अपभ्रंश भाषा के सन्धि-काव्य और उनकी परम्परा' नाम का लेख पढ़े।
कथा साहित्य भारतीय वाङमय में कथा, पुराण और चरित ग्रन्थों का उल्लेखनीय बाहुल्य है। प्रायः सभी सम्प्रदायों के विद्वानों ने विविध भाषाओं में पुराणों, चरितों और काव्य, चम्पू आदि विविध ग्रंथों का निर्माण किया है । जहां जनेतर विद्वानों ने अपभ्रंश को गौण कर संस्कृत आदि अन्य भाषाओं में कथा-साहित्य की सष्टि की हैं, वहां जैन विद्वानों ने प्राकृत और संस्कृत के साथ अपभ्रंश भाषा में भी कथा, चरित और पुराण ग्रन्थ निबद्ध किये हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने भारत की विविध प्रान्तीय भाषाओं में-मराठी, गुजराती, राजस्थानी और हिन्दी आदि में भी पुष्कल कथा-साहित्य रचा है ।
कथायें कई प्रकार की होती हैं; परन्तु उनके दो भेद मुख्य हैं-लौकिक और धार्मिक (प्राध्यात्मिक) । इन दोनों में सभी कथाओं का समावेश हो जाता है, धार्मिक कथाओं में तो आध्यात्मिकता की पुट रहती है और लौकिक कथाओं में पशु-पक्षियों, राजनीति, लोकनीति, हाव-भाव, शृंगार आदि रागोत्पादक
र लौकिक मनोरंजक पाख्यानों का सम्मिश्रण रहता है। इनमें आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत धार्मिक कथाओं का घनिष्ठ सम्बन्ध आन्तरिक जीवन-घटनाओं के साथ रहता है, इनमें व्रतों का सदनष्ठान करने वाले भव्य श्रावकों की धार्मिक मर्यादा के साथ नैतिक जीवनचर्या का भी अच्छा चित्रण पाया जाता है। साथ ही उनके भारी संकट उपस्थित होने पर धीरता से विजय प्राप्त करने, अपने पुरुषार्थ को सुदृढ़ रूप में कायम रखने तथा धार्मिक श्रद्धा में अडोल (निश्चल) रहने का स्पष्ट निर्देश पाया जाता है। कितनी ही कथाओं में जीवनोपयोगी आवश्यक तत्त्व का संकलन यथेष्ट रूप में पाया जाता है, जो प्रत्येक व्यक्ति को जीवन सफल बनाने के लिए आवश्यक होता है। असल में सत्-पुरुषों का उच्चतर जीवन दूसरों के लिए आदर्शरूप होता है, उस पर चलने से जीवन में विकास और नैतिक चरित्र में वृद्धि होती है, एवं स्वयं का जीवन आदर्श बनता है। इससे पाठक सहज ही में कथाओं की उपयोगिता और महत्ता का अनुभव कर सकते हैं।
१. देखो, पाटन भंडार सूची, जो गायकवाड प्रोरियन्टल सीरीज बड़ौदा से प्रकाशित हुई है।