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जनग्रंथ प्रशस्ति संग्रह
अपभ्रंश काव्यों में रोमांचकता कुछ विद्वानों ने अपभ्रंश काव्यों में रोमांचकता को रूढिपरक बतलाकर उनके औचित्य को निरर्थक सिद्ध किया है । डा० शम्भूनाथसिंह ने अपने 'हिन्दी महाकाव्यों का स्वरूप विकास' नाम के ग्रन्थ में रोमांचक शैली के महाकाव्यों के कुछ नाम गिनाये हैं और उन्होंने उन पर विचार करते हुए उनकी कुछ परम्परागत रूढियों को दिखाने का प्रयत्न किया है :
(१) भविसयत्तकहा-धनपाल । (२) सुदंसणचरिउ-नयनन्दि सं० ११०० । (३) विलासवइकहा-साधारण कवि ११२३ । (४) करकंडुचरिउ-कनकामर । (५) पज्जुण्णकहा-सिद्ध तथा सिंह। (६) जिरणदत्तचरिउ-कविलक्ष्मण वि० सं० १२७५ । (७) गायकुमारचरिउ-माणिक्कराज सं० १५७५ । (८) सिद्धचक्कमाहप्प (श्रीपाल कथा)-रइधू । डा० साहब की मान्यता है कि
(१) वस्तुतः ये कथाएँ लोक-कथाओं और लोक-गाथानों के आधार पर लिखी गई हैं। जिनमें कवियों ने कुछ धार्मिक बातें जोड़कर कथात्मक काव्य या चरित काव्य बनाने का प्रयत्न किया है।
(२) इन काव्यों में युद्ध और प्रेम का वर्णन पौराणिक शैली के काव्यों की अपेक्षा अधिक है, और विकसनशील महाकाव्यों में रोमांचक तत्त्व अधिक होते हैं। जैनों ने धार्मिक आवरण में रोमांचक काव्य लिखे हैं।
(४) इन काव्यों में अतिशयोक्ति पूर्ण बातें अधिक हैं। इनमें साहसपूर्ण कार्य, वीहड़ यात्राएँ, उजाड़नगर, भयंकर वन में अकेले जाना, मत्त गज से युद्ध, उग्र अश्व को वश में करना, यक्ष, गन्धर्व और विद्याधरादि से युद्ध, समुद्रयात्रा और जहाज टूटने आदि का वर्णन मिलता है। इससे कथा में रोमांचकता का गुण बढ़ जाता है और पाठक की जिज्ञासा की तृप्ति होती है। यह कथा-पाख्यायिका का गुण है, जिसे इन काव्यों में अपना लिया गया है । इस विषय में मेरा विचार इस प्रकार है :
डा० साहब की उक्त मान्यतानुसार इन जैन काव्यों को रोमांचक मान भी लिया जाय, तो भी इनसे रागवृद्धि और अनैतिकता को कोई सहारा नहीं मिलता; क्योंकि जैन कवियों का लक्ष्य 'विशुद्धि' रहा है। इन अपभ्रंश काव्यों में शृंगारादि सभी रसों का वर्णन है। किन्तु ग्रन्थकारों ने शृंगार को वैराग्य में
और वीर रस को शान्तरस में परिवर्तित किया है, और नायक के विशुद्ध चरित को दर्शाने का उपक्रम किया है। अन्य रोमांचक काव्यों में जैसी रागवर्द्धक कथाओं, लोक-गीतों, यात्रा और वन-गमनादि की घटनाओं को अतिरंजित रूप में उल्लिखित किया गया है, साथ ही शृंगारादि रसों का वर्णन भी रागोत्पादक हुअा है, जो मानव जीवन के नैतिक स्तर को ऊंचा उठाने में सहायक सिद्ध नहीं होता, वैसा वर्णन इन जैन अपभ्रंश काव्यों में नहीं मिलता। अतः उन्हें अन्य रोमांचक काव्यों की कोटि में नहीं रक्खा जा सकता । यहाँ सूदंसणचरिउ की मौलिकता और विशेषता पर विचार करना अप्रासंगिक न होगा।