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प्रस्तावना
(१०) वर्णन में विविधता-ग्राम नगर, प्रभात, सन्ध्या, प्रदोष, सूर्य, चन्द्र, अन्धकार आदि कृतिक दृश्यों, संयोग-वियोग, विवाह वेष-भूषा, लोक जीवन की परिस्थितियाँ, सुख-दुख, युद्ध, वर्णन और 'माजिक व्यवस्था का सुन्दर सजीव चित्रण ।
(११) ग्रन्थ में यथाप्रसंग लोकोक्तियों और सुन्दर सुभापितों का प्रयोग ।
(१२) काव्य में विविध अलंकारों का सन्निवेश, जैसे शब्दालंकारों में यमक, श्लेष और अनुप्रास । र्थालंकारों में उपमा, व्यतिरेक, विरोधाभास और अनन्वय आदि का होना। तिपय महाकाव्यों के नाम-पउमचरिउ, महापुराण, हरिवंशपुराण और पाण्डवपुराण आदि ।
___ खण्डकाव्य 'खण्डकाव्यं भवेत् काव्यस्यैकदेशानुमारि' इस लक्षण के अनुसार खण्डकाव्य में जीवन के किसी क पहलू की झाँकी रहती है। खण्डकाव्यों में वर्णनीय विषय, कथानक, कवि की बहुज्ञता, पात्र, रस, द्धवर्णन, भावाभिव्यंजना, प्रकृति-वर्णन, सामाजिक व्यवस्था और भाषा में सौन्दर्य लाने के लिये कवि थल-स्थल पर उपमा और श्लेषादि अलंकारों का प्रयोग करता है। खण्डकाव्य की विशेषता
यहाँ मैं नागकुमार चरित के आधार से खण्ड-काव्य-गत कुछ विशेषताओं का उल्लेख कर देना पावश्यक समझता हूँ। उस काल में संगीत कला का शिक्षण राजकुमार और राजकुमारियों के लिये प्रावत्यक माना जाता था। राजकुमारियाँ इसी के आधार पर वर का चुनाव करती थीं। काश्मीर की राजकुमारी 1 नागकुमार से उसी समय प्रणय-सम्बन्ध किया था जब उसने आलापिनी (वीणा) को बजाने में अपनी निपणता का परिचय दिया था (नागकुमार चरित ५-७-११) नागकुमार ने स्वयं वीणा बजाई और उसकी तीन रानियों ने जिन मन्दिर में नृत्य किया था (नागकुमार चरित ५-११-१२) मेघपुर की राजकुमारी ने भी मृदंग बजाने की चतुराई दिखलाने पर ही विवाह किया था (८-७-७)
जब जयन्धर का पृथ्वी देवी के साथ विवाह-सम्बन्ध हुआ तब पुरनारियों ने नृत्य किया था (१-१८-२)। उस समय मनोरंजनों के साधनों में क्रीडोद्यान या जलक्रीडा प्रमुख थे। राजकुमार अपने अन्त:पुर के साथ इन स्थानों पर जाकर आमोद-प्रमोद किया करते थे । कवि के समय समाज में संभवतः द्यूतक्रीड़ा की प्रथा थी, इसके लिये वहाँ अनेक द्यूत-गृह बने हुए थे। धनोपार्जन के लिये भी लोग द्यूतक्रीडा का आश्रय लेते थे जैसा कि नागकुमार ने किया था।
__ जैन कवियों ने पुरातन कथानकों का काव्यों में चयन कर अपने रचना कौशल से प्रबन्ध-पटुता और सहृदयता आदि गुणों का समन्वय किया है। जिससे ये काव्य-ग्रन्थ पाठकों की सुपुप्त भावनाओं को प्रेरणा देने या उद्भावन करने में सहज ही समर्थ हो जाते हैं। जैन कवियों ने अपभ्रंश भाषा में अनेक खण्डकाव्य बनाये हैं । जसहरचरिउ, नागकुमारचरिउ, जंबूस्वामिचरिउ, सुदंसणचरिउ, सुकुमालचरिउ, करकंडुचरिउ, सुलोयणाचरिउ, ऐमिणाहचरिउ, वाहुबलिचरिउ, सुकोशलचरिउ, धण्णकुमारचरिउ, मेहेसरचरिउ और पासणाहचरिउ आदि।
इन काव्यों के अतिरिक्त अनेक रूपक खण्ड-काव्य भी बनाये हैं, जैसे मयणजुज्झ, मयण-पराजय आदि । इसी तरह जैन कवियों ने हिन्दी भाषा में भी रूपक खण्डकाव्य लिखे हैं, जैसे भगवतीदास का चेतन चरित, पंचइन्द्रिय-संवाद आदि ।