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पैनप्रन्य-प्रशस्ति-संग्रह दिण्णेक ढुंढाहड देस मज्झि, एयरी चंपावह परिम सत्यि। तहिं अत्थि पास जिरणवरणिकेउ, जो भव कणिहि तारणहसेउ । तसु मझि पहाससि वर मुणीसु, सह संठिउ णं गोयमु मुणीसु । तहु पुरउ णिविट्टिय लोय भव्व, णिसुणंत धम्मु मरिण गलिय-गब्व । तहं मल्लिदास वणि तणु रहेण, सेवइ सुवुत्तु विणयं सहेण । भो घेल्हणंद ! सुणि ठकुरसीह, कइ कुलह मज्झि तुहु लहणु लीह । महु मेहमालवय कह पयासि, इण कियइ केण फलु लदु प्रासि । इह कह किय चिरु किण सहसकित्त, तुह करि पद्धडिया बंध मित्त । ता विहसि वि जंपइ घेल्हणंदु, जो धम्म कहा कहरिण प्रमंदु। भो मित्त ! पइमि बुज्झिउ हियत्यु, कह कहमि केम बुज्झउ ण अत्यु । वायरणु न मई गुणियउं गुणालु, कोवद्दम दीठउ रसु रसालु ।। जो हरइ जड तण तणउ दोसु, सो सवणि सुरिणयउ तिय सकोसु । कह कहरिण बुहयण हसहि मझ, किहकरि रंजावमि चित्त तुज्झ ।।
अन्तिम भाग:
सुप्रभंयडी चिरू लेवि सुत्तयं, करी कहा एह महा पवित्तयं । उरणग्गलं जंपय मत्त जंपिया, खमेउ तं देवी भारही मया ॥ ता माल्हा कुल-कमलु दिवायरु, अजमेराह वंसि मय सायरु । विरणयं सज्जण जगमरण रंजणु, दारिंग दुहियह उल-भंजणु ॥ रूवें मयरद्ध य सम सरिसु वि, परयण पुरह मज्झि मह पुरि सु वि । जिण गुण णिग्गंथह पयमत्तुवि, तोसण पंडिय कवियण चित्तु वि। वुच्छिय वयण सयल परिपालण, बंधव तिय सहयर सुयलालणु । एलीतिय भरण रुहइल सोहण, मल्लिदास यातहु मणु मोहण । तिणि सेवइ सुन्दरि यह कह सुरिण, सरिसु वउलीमउ सु दिदु मणि । पुणु तोल्हा तणेण परमत्थे, कह सुरिण वउली योसिर हत्यें? पुणुवि पहाडियाह वरवंसवि, लखीसयल णयरि सुपसंसवि । जीणा नंदणेण जिणभत्ते, ताल्हू वउली यो विहसंतें। पुणु पारस तणेण दुहुवीरें, गहिउ सुवउ जइ तइजस धीरें। पुणु वाकुलीयवाल सुविसालुवि, वालू वउली यो घणमालुवि । पुणु कह मुरिणवि ठकुरसी दरिण, रोमिदास भावरण भाईय मरिण । पुण गाथूसी बग्गरि भुल्लणि, लीयउ बउ जिउ रिय भय डुल्लणि । पुणु कह सुरिणवि मणोहर गारिहि, प्रवरहि भव्वण यर गर-णारहि । मेघमालावउ चंगउ महियउ, इंछिउ फलु लहि सहि कवि करियउ । चंपावतीव णयरि णिवसंते, रामचन्दपहु रज्जु करते। हाधुवसाहु महत्ति महत्ते, पहाचन्द गुरु उवएसते।