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________________ वीरसेवा मंदिर ग्रंथमाला सुगन्ध बसमीकहा (सुगन्ध दसमी कथा) भ० बिमलकोति मावि मंगल पणवेप्पिणु सम्मइ जिणेसर हो जा पुन्वसूरि प्रागम भणिया । रिणसुणिज्जहु भवियहु इक्कमना कह कहमि सुगंधदसमी हित भणिया ।। अन्तिमभाग दसमिहि सुमंध विहाणु करेविणु तइय कप्प उपण्ण मरेविणु । चउदह पाहरयेहि पसाहिय सागी सुहुइ भुंजइ अविरोहिय ।। पुहवी मण्डणु पुरु सुरुदुल्लहु, राउ पयाउ दयाजण वल्लहु । मानस सुंदरि गत्ति उपण्णी मयणावलि नाम संपुण्णी ।। दिणि दिणि कुमरि वि पावह भत्ती भव्वलोय माणस मोहंती। सामवण्ण मण्णवि सुरहि तणु, जिणवरु सामिउ पज्जइ अणुदिणु । दाणु चउविह दिति ण थक्कइ, तह वच्छल्ल का वण्ण ण सक्कइ । धम्मवंत पेखि परणारहिं पोमाइयइ धम्मह असगहि । रायं सा परिणाविय जामहि पुत्तकलत्तहिं वट्टियतामहि । रामकित्ति गुरुविणउ करेविणु विमलकित्ति महियलि पडेविणु। पच्छइ पुणु तवयरणु करेविणु सइ अणुक्कमेण सो मोक्खु लहेसइ ।। पत्ता-जो करइ करावइ एह विहि वक्खारिणय विभवियह दावेइ । सो जिणणाह भासियहु सग्गु-मोक्खु फल पावइ ।।८।। इति सुगंध दसमी कथा समाप्ता पुप्फंजलिकथा (अनन्तकीति गुरु) मादि मंगल जय जय मरुह जिणेसर हयवम्मीसर मुत्तिसिरी वरंगण धरण। प्रयसय गण भासुर सहय महीसर जुत्ति गिराधर समकरण । अन्तिम भाग बलवत्तरिगणि रयणकित्ति मुणि सिस्स बूहिवं दिज्जइ । भावकित्ति जुउ अनंतकित्ति गुरु पुप्फंजलि विहि किज्जइ ॥११॥ • पुष्पांजलि कथा समाप्ता -राजस्थान ग्रंथ भंडार सूची भा० ४ पृ० ६३२ मेघमालवयकहा (कवि ठकुरती) रचना काल सं० १५८० प्राविभाग ण्य परिम जिरिंगदु वि दय कंदु वि सुव सिद्धत्व वि सियरो। कह कहमि रसाला वयघणमाला पर णिसुणहु करिकण्णविरो॥
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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