SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . जैनग्रन्थप्रशस्ति संग्रह १८१ पणवह साइजिपस बेग्गल सावण मासि घट सिय मंगल । कहिये। पपउ पहाडिएससिरोमणि, बेल्हा गर तमु तिय वर धर बस्तुबंध-कोण सुबरि विणवह बयण काराविय एह कह। मिणि। मेहमालय विहि रवणिय पुण पुषि यह लिहावि करि । तह तणइ कवि ठापुरि सुदरि, यह कहि किय संभव जिन पयउ कणि पंज्यिह दिग्णिय मल्लाणंदु सु महिमलह . .मंदिरि। सेवर सेवर गुणह गहीर। पत्ता- ओ पढह पढाबह णियमणि भावद लेहाइ विसई नंबउ तब लगु-जउला, बहा गंगनादि नीर ॥११॥ करि लिहिये। इति मेघमाला कहा समाप्त मिति। - तसु वय की यह फल होह विणिम्मलु राम सुगणि गोय. ..: . पाठ-भेद . . : प्रशस्तिसंग्रह के छप जाने पर कुछ शुद्ध प्रति देखने को मिलीं जिन का पाठ शुद्ध प्रतीत हमा, उसे नीचे दिया जाता है, पाठक उमका अवलोकन कर यथास्थान दूसरा पाठ भी बनालें। १०वीं प्रशस्ति के ब्यावर की प्राचीन प्रति के पाठ-भेद :६० १५० ५ में जेण प्रणक्कमु हउ दायारु गुरण करिउ के स्थान पर 'जेण अणुक्कमि हुउ दायारु गुणकरिउ'। ६.१५० १६ में लक्खणू चउत्थो लक्खणू पसत्थु के स्थान पर 'लखमणु चउत्यो लक्खण पसत्यु'। ९० १२५ तह पिय गयणं वइदेहं जायदणं के स्थान पर 'तह पियमणं वइ देह जाय' । पृष्ठ ८६ की पंक्ति १० के बाद का पत्ता निम्न प्रकार है : पत्ता इय खुल्लयवयणे पोसिय गयण प्रवहारि पंडिउ चवइ। खीरण्णव पाणिउ सुरयण माणित को जडु घड उल्लें मवइ ॥३॥ शुध्दि-पत्र पृष्ठ कालम पंक्ति अशुद्ध कालम पंक्ति अशुद्ध ३ २ १९ गंधम्मि गंथाणं १ २४ आणावस प्राणासब ५ १ २४ गयउ गउ १ २८ णिहभउ णिहियउ ___८ १ ३३ बंध घर ३३ २ १५ जसहरु । ११ २ २०. मंधसेणु अंबसेणु २ २१ वय यम पिय यम १२ १ २६ -- विण्ह मुणि सुय- ३४ १ ७ बाहुवाण चाहवाण सागर पारएण ३६ १ १२ अणु मण्यु १५ २ २५ जिणदत्त चरिउ,१३ जिनदत्त चरिउ ३६ १ २५ सहोयरु मणोहरु १६ १ १७ तें सिरिणामें तेंसिरिहरणामें ३६ १ २६ णिव-सागर णिव सांरग २३ १९ कविदेवदं कवि देवचंद ३८ २९ पंडवपुराणु २१ पंडवपुराण २३ २ ३६ कब कय ५० १ ३० -- दुगणिय पणरह ३२. २ १६ गहीर-गाहि गहीरणाहि वच्छर जु एहि ३२ २ २७ ललियरकरई ललियक्खरइं ५ ० १ ३१ कागुण फागुण १ २१ प्रणणिय प्रगणिय ५१ २ १२ णतोय णिहिन्व-णं प्रभोणिहिब्व ३३ १ . परमप्पय परमप्पय पय ५१ १ १२. प्रवविणिहिम्ब भवरवि मुनिंद.. शुद्ध
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy