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________________ परिशिष्ट १ कुछ मुद्रित ग्रन्थ प्रशस्तियाँ २०६ सयंभुछंद (अपभ्रंश) महाकवि स्वयम्भू मादिभाग:-. जो पाउमस्स सारो तस्स मए लक्ख लक्खणं सिट्ठम् । एताहे मवहंसे साहिज्जन्तं णिसामेह ॥१॥ इहि मारा विन्दु जुमा पावसाणम्मिजह हुवन्ति लहू । तह कत्य वि छन्द वसा का अव्वा उहह पारावि ॥२॥ उपारो बिन्दु जुमो पभावसारणम्मि लहू चउमुहस्स । मन्तिमभाग: पद्धड़िया पुण जेइ करेन्ति, ते सोउह मत्तउ पउ घरेन्ति । विहिपहिं जमउ ते णिम्ममन्ति, कडवम अहिं जम अहि रन्ति ॥३० प्राइहिं पुरण घत्त समामणन्ति, जं पावसाण छड्डणि भणन्ति । संखारिणबद्ध कडवेहि संधि, इह विविह पभारहिं तुहं विबन्धि ॥३१ संधि भेप्राइं ते रइम एम, छड्डरिणयावि पत्ता भण सु भेन । अण्णाउ विविह पारिपाउ, पत्ताउ छड्डरिण विभारिमाउ ॥३२ तीए सुण वि बज्झन्ति ताउ, लोएहि केण विण्णाण ताउ । सालाहणेण धवलाई जाई, विरइ माइं भरणे आई बहु विहाई ॥३३ इम एम मसेसव बज्झन्ति, सपल उणा परिन। सुपसिद्धा लोए पंडिग्र, जणेहिं समाप्ररिम ॥३४ संघिहि आइहिं घत्ता, दुवई गाहाडिल्ला। मत्ता पद्धडिपाए, छडूणियां वि पडिल्ला ॥३५ संघियत्ता जहाजिणु पच हुँ रत्तुप्पलहिं, दीवा वे विणुवारि । एक्कमि जम्मण पुणु माणु, छिण्णहु अट्ठ पहा (या) रि ॥३६ अह दुवईपडिहि अमिण कण्ण गंडत्थले विउरणो विट्ठ पुच्छरो। रिणह प्रवलिकर पहर परिसर थिरकणिज्ज सरीरमो ।। छल दलिवलय मधुर झंकार विराजित कुम्भ मंडलं । तव नम नेन नाथ नाकामत्ति परिकू पितोपि केसरी ॥३७ अह गाहा जहातुम्ह पन कमल मूले अम्हं जिण दुःख भावत विप्राइं। . ढरु दुल्लिपाइं जिणवर जं जाणसु तं करेज्जासु ॥३८ अह अडिल्ला जहा प्रक्क पलास विल्लुप्रड रूसउ, धम्मिम एम एम महु प्ररु तूसउ। डुदाइच्च बह्म हरिसंकरु, जे मेराउ देउ हरिसंकर ॥३६ मत्ता जहाजयहि जिणवर सोम प्रकलंक, सुर सण्णम विगम मम । राम-रोस-मन-मोह वज्जिम, ममण णासण भव-रहिम ॥४०
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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