SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह आदि दुवई १०८ सुगंधवहमी वय कहा (सुगंषदशमी देसहं भरहे णासणि वरिटूह, चउ विह संघ भब्वहें । व्रत कथा रासु) रिसह जिणंद पमुह वीरंतइं सांति करेंहि सव्वहें । इयजोग झाणाणुसरे चिरसूरि पउत्तियाण अणुसारे । भगवतीदास बहु जोयस्स विसेसो पढभा रंभेण संकर हेसो। कय सुयकित्तिसउण्णो भविया प्रायणि चित्त संतोसो। वीर जिरिणदं चरण जुग पणविवि गोयमुजान विसाला। सो बुहयण गुरुपय भत्तो णाम विदीयो परिच्छेप्रो॥ बउ सुगंधदसमी गुण निम्मल भासमि रासु रसाला। समत्तो॥ भविकजण यह दसमी वउ कोजइ, दुक्ख जलांजलि दीजह । तेरापंथी मंदिर प्रति जयपुर सं०१५५२ अन्तिमभाग: गुरु मुणि माहिंद सेणु १०७ मउड सत्तमि कहा (मुकुट सप्तमीकथा) भट्टारउ चरण कमल नमि तासो। भगवतीदास रुहतग वीर जिनालय मणिहरि आदिमंगलपणविवि पंच परम गुरु सारद परि वि मरणे । भरणत भगौतीदासो॥ सत्तमि मउड तणउ फलु भासमि भेउ जणं । भविक जण यहु दसमी वउ कोजइ । अन्तिमभाग: पर णारि जो गावहिं मन बचि अण्णुवि जो णरु णारी करणी भाउधरे। मुहि चतुर मनि धारी। सो एरिसु फलु लहसी वमु परि निहारिण के। राज रिद्धि सुर नर सुहु भजिवि गुरु मुणि माहिदसेण चरणयुग धर विमणां । दासुभगोती भासै निमुणहु भविकजणां ॥१४ मुकति वरहि वर नारी। पढहि गुणहि जे बुहियण सुरणहि सुजाण गरा। भविकजणु यह दसमी वउ कोजइ, राज रिद्धि लुमंगलु दिण दिण ताह धरा ॥१५ बुक्ख जलंजलि दीजइ ॥२७ इति मउडसत्तमि कहा समत्ता। इति सुगंध दसमी कहा समात!।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy