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इसके बाद पंचपरमेष्ठियों का स्तवन है
अन्तिमभाग:
घत्ता
गण जि बलातकार वागेसरि,
गच्छ पसिजाय भो ।
तह पोमरणंदि गुरु गणहरु,
बहु- सुद-तवणु रायो ।
तह बहु सिस्स जाय गुणवंतई, विज्जा विरणइ सीलमइ वंतई ।
देविंदकित्ति हिहाण,
मालवदेस पसिद्ध पहाणई । जहसु पवाहिय सावय वग्गई, तिहुवणकित्ति सिस्समइ उग्गई । ते मंडलायरिय विक्खायनं, सिसवग्गतह धम्मगुरायई । पुण सुकतिपय प्रहिहाण, प्रायम-भेय किंच सो जाई । धम्मपरिक्खा गंधु खडकम्मई, पत्त परिक्ख तहय मुरिण धम्मई । तं हरिवंस सगं चिरु पिक्खउ, पढडिया छंदेण पलक्खिउ ।
परिमिट्ठपयासु तदंतर, सिद्धचक्क कह वह मंहत्तर । पुवर जोय-भारतद प्रक्खिउ, संकर चिर पारंभिवि रक्खिउ । जो भाणु मरण सो प्रणुरायठ, णाणाणउणिए वि विक्खायउ । तह सुत्ताणु सार पारंभिउ, पद्धड़ियाँ छंदें मरिण विभिउ ।
गिह वावार तेम सो रहियउ, सोवइ मरु सुदकित्तिर्हि कहियणउ ।
तं किय उस उष्णउं बहु पय पुण्णई
जं चिर प्रायम सहि म्रो । जायहु गुण प्रक्खि भारण पलक्खिय संकर अणु लोएं मंहियो ॥ ७१ ॥
वीरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला
दुबई
घत्ता
रणारणा वरण कम्मखय-कारण
तं सुउत्तम भइ ।
सुक्क - भाणु जिण सासरगु
तव पय पुर पवित्त श्रो ॥ चेवि सहस मुणि प्रत्थ भउव्वई ।
जे सद्दह ते गइ सुह गच्छई । प्रत्थ जि दय-धम्मह मण लीणइं । ते सासय- सुह लहहि पवीणई । fareय रायहु ववगइ कालई । पणारह सय ते वावण अहियई ।
उगंथु तं जाउ उण्णउ सेय पक्खु मग्गसिर मणुण्णउ । पंच... दासरू जायउ । [सद्द प्रत्थ पुण जग विक्खायउ । मंडवचलगढ़ जो सुपसिद्धउ । साहिं गयासु जयम्म गरिदउ । साहि सीरु ताहि सुइ गंदणु ।
दमण सिट्ठति प्रागंणु । पुंजराज वरिंग मंति पहाणइ । ईसरदास गयंद प्राणई । वत्थाहरण देंस बहु पावइ ।
- णिसिधम्महु भाबण भावइ । (सावय- धम्म) मरणहि भरगुरायउ । तह जेरहद यरु विक्खायउ । हर सावय मरिण हिट्ठरं । मिरगाह जिणहर मुट्ठि । तह यह गंधु जाउ परिपुष्ण ं । णिसुरिउ सखय संघ मगुण्णउं । मरण प्रारदिय सावय वग्गई । जयसिंघ मिदास सु-हरिसंगई ।
अवर जि भरणाइय गंण लिहाइय पुष्ण पवि ढप्पिउ तह धरणउ । कुष्णारण विहट्ट गाण पवट्टई । सो सिव संपइ सुह जरगउं ॥ ७२ ॥