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________________ १२२] वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला ६८ अणुवेक्खा (अनुप्रेक्षा) ब्रह्मसाधारण प्रादिभाग:वंदिवि जिरणवर वाणिगुरु पयडि तित्थ बहु सत्थ पयासिणि। पंरिय लोयहो जडमइ णामिणि सरसइ होउ पसण्ण महु ॥ सुरणर खेयर णमिय भडारी बंभ सहारण विष्णवइ । जह अणुवेहा कव्वु पयाममि । वंदि वि जिणवर वारिण गुरु । अन्तिमभाग: परम तच्च सिद्धत पयासण, गोयम कुदकुद गणि सासण। पहससि पंकयणंदि गुरु, हरिभूसण गरिंदकित्ति तणु। विज्जाणंदिय सीसभरु, परम बंभ साहारण पणविय वंदिवि । इति श्रीनरेन्द्रकीति शिष्य ब्रह्म साधारण कृत मनुप्रेक्षा समाप्ता। ९८ सिरिपाल चरिउ (सिद्धचक्रवत कया) कवि रइधू मादिभाग सिद्धहं सुपसिद्धहं वसु-गुरण-रिद्धहं हियम कमले धारे वि निरु । अक्खमि पुणुसारउ सुह-सय-सारउ सिद्धचक्क-माहप्य-वरु॥ छांगे साहु हु वंस प्रलंकिउ, मुणिवर गुण भावइ निसंकिउ । बाटू साहुहु पुत्तु धुरंधरु, जिणणाहहो पय-पयरुह-महुयरु । दाणे तिविह-पत्त-पोसणयरु, दिउचंदही भज्जहि पुण जो वरु । करमसिंह णंदणेण समाणउ, सोहय महियलिउ नय-माणउ । सो हरसीहु साहू विक्खायउ, जो-जिण-पय-पंकय-अणुरायउ। जो सावय-वय-दिढधरकंधर, जो गुणियण तरु-पोसण-कंधरु । जो चेयणु सु एकु मणि भावइ, झाणे चेयण जो पुणु झावइ । तिष्णि काल रयणत्तउ मंचइ, जो णिउय चारिवि सं सुच्चइ । जो परमेट्ठि पंच पाराहइ, जो पंचेंदिय विसयहं साहइ । मिच्छामय पंचवि प्रवगण्णइ, जो वासरु छह कम्महं मण्णइ । जो छहब्व-भेय सुणिहालइ, सत्त-तच्च-सद्दहइ रसालइ। सग-दायार-गुणहि अणुरत्तउ, सत्त-वसण-वासहिं विरत्तउ । भट्ट-सिद्ध-गुण-चिंतण-तप्परु, रिणस्संकाइ भट्टगुण सुदरु। भट्ट-दव्वजिरण-चरणहं पुज्जइ, पत्तदाणु दें विसयइं भुजइ । णव-पयत्थ-भैये जो जाणइ, दहविह धम्महं जो रइ माणइ। तहु विण तिवसें भव-हारी, मक्खमि सिद्धचक्क कह सारी । घत्ता भव-भय-सयहारी तिहुवणसारी सिरिपालें जा विहिय चिर। सा रुय-रिणण्णासरिण विग्घ विरणासरिए भणमि लोयमणुधरि वि चिरु ।। xxxx इय सिरि सिद्धिचक्क सुविहाणे महा मंडलेसर सिनि पाल-मायसुपहाणे सिरि महाभब्व-हरसीसाहु गामंकि मयणसुदरि-विज्जालाहो नाम पढमो संधि परिच्छे। समत्तो । संधि १॥ मन्तिमभाग:घना पुरण देवि सरासह विवि समासइ ऐमित्ति हु बंसु जि भणमि।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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