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जैनग्रन्थ- प्रशस्तिसंग्रह
पुर दियर वासर कह करोमि, भव्वर हो मरिण संसउ हरेमि । अन्तिमभागः
घता
जो रविवासर-वउ करहि गलिय-मउ दंसरगुत्त वय धारणु । गरिदकितित लहहि सुरत्तणु परम बंभ
साहारणु ॥५॥ इति रविवासर कथा श्रीनरेन्द्रकीर्ति शिष्य ब्रह्म साधारण कृत समाप्तः ॥
४ तियाल चडवीसी कहा (त्रिकाल चौवीसी कथा) ब्रह्म साधारण प्रादिभागः
तिहुवण सिरि तिलयो गुण - गरण - गिलयहो भविय कुमुय-वरणचंदहो । रयणत्तय - जुत्तहो कलिमलचत्तहो परणविवि परम जिरिंग ॥ १॥
अन्तिमभागः
धत्ता
जे तियालचउवीसहे हिय रईसहि विरयहि विहि गुण धारण । ते गरिंदकित्ती पउ अमरेसर जउ लहहि वभ साहाररणु ॥५॥ इति श्रीनरेन्द्रकीति शिष्य ब्रह्मसाधारणकृत त्रिकाल चवीसी कथा समाप्तं ।
६५ कुसुमंजलि कहा ( पुष्पांजलि कथा )
ब्रह्मसाधारण
प्रादिभागः
परमप्पय सारहो गुणगणधारहो, पर्याडिय तच्च
वियारहो । पालिय वय बंभहो दुक्ख रिणसुभहो पणविवि वीर भडारहो ॥
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अन्तिमभाग:
घता
जे कुसुमंजलि विहि विरयहि कर्यादिहि पाव - किलेसरिण
वारण ।
१२१
ते गरिंद कित्तेसर अमर खगेसर पयड बंभ साहारण ||५||
शिष्य ब्रह्मसाधारण कृत
इति श्री नरेन्द्रकीर्ति
पुष्पाजलि कथा समाप्तः ॥
६सी संतमिवय कहा (निर्दोष सप्तमी व्रत कथा ) ब्रह्म साधारण
आदिभाग:
रयणतय धारहो भवसरितारहो समय कमल सरणे सरहो ।
गुरागरण संजुत्त हो सिवपुरपत्तहो बंदिवि वीर जिले सरहो ।।
अन्तिम भागः
धत्ता
जे णिम्मल भावहि वज्जि य गावहि पढहि पढावहि एह कहा । ते पर सुर सुक्खइ लहहि असंख बंभ सहारण कहिय जहा ||५|| इति नरेन्द्रकीति शिष्य ब्रह्मसाधारण कृत निर्दुख सप्तमी कथा समाप्ता ।
६७ णिज्भर पंचमी कहा (ब्रह्मसाधारण) आदिभागः
परणविवि परमेसरु वीर जिणेसरु वाए सरि गियमरिण धरि वि । पहु-कित्ति पाएं मरिण धराएं णिज्झर पंचमी फलु कहमि ॥
*न्तिमभागः
घता
सिरि मूलसंघ उदयगिरि मुरि पहु किनि दिसरु | तहो सींसु सहारणु बंभवरु तें पयडिय पणवेवि गुरु ||५|| इति श्री नरेन्द्रकीति शिष्य ब्रह्मसाधारण कृत निर्झर पंचमी कथा समाप्तः ।