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________________ नग्रन्थ-प्रशस्तिसंग्रह [१२३ जाटा गामें पढम भरिंगज्जइ, गायणेहें जो महरिणसु मिज्जा । जोल्हाही तह पियय मउत्ती, सा गोविंद सुवेण पउत्ती॥ गोविंदहु तिय धोल्ही बुच्चइ, तहु नंदणु तुणु चेचा सुच्चइ । धणसीहहु सुतीयउ माला, तहु तिय लाडो प्रइ सुकमाला । पत्ता -- पुणु जा सुहिरज्जें दुण्णयवज्जें हुवउ सत्थु पुणु थुगमि ॥ गोपाचलु दुग्गु पसिद्ध णामु, घय-कंचण-रिख, जणाहिरामु। गोउर-पायारंकिउ सुवित्तु, पर नर अगमु न सयहि चित्तु, तहिं पत्थि राउ भरि कुल कयंतु, तोमर-कुल-पायडु मह महंतु ॥ सिरिडू गरिंदु णामेण सूरु, विप्फुरिय पयावें णाई सूरु ।। तहु किनुपालु णंदणु गरिद, णं रूवि कामु सम्वहं मरिगट्ट । तहु रायरज्जि सम्मारणवंतु, सिरि प्रयरवाल वंसहि महंतु । सावय-वय-पालण-विगय-तंदु, रिसि दारण पहावें जो भमंदु । वाटहु जि साहु हुउ मासि घण्णु, रिणय जसेण जेण दिसि मग्गु छण्ण । तहु भज्ज जसोवइ कमलवत्त, तह उवरि उवण्णा विष्णि पुत्त । गुण गण भायण राहु सुजेट्ट, जिण चरण कमल जो भसलु सिद्ध । घत्ता बाटू साह हु सुउ तीयउ पुरण हूप्रो बोहिथ नामें दीहि-भुनो। गुणगण रयणायर जिणवयणायरु नानिगही पिय भज्ज जुमो ॥२॥ जो पुणु बाटूसाहु पयासिउ, तह चउत्थरणंदणु विजयासिउ । हरसीसाहु नामु महि पायडु, जो जिणभरिणय सत्थ-प्रत्थहु पडु । तहु कलत्त परियणहं पहाणी, जिह सिरि रामहु सीया जाणी। देब-सत्थ-गुरुवयरण कलायर, दिव बंदही नामें नेहावर । बीजी भज्जा पुणु वील्हाही, णं गोविंदह लच्छि पसाई। तहु नंदणु पुणु कइयण वरिणउं, जो डुगर रायं निरु मरिणउं । नामें करमसीहु सो नंदउ, अह-निसु जिनवर चरणइं वंदिउ। जउणाही तिहु तियसु पसिद्धी, विहुकुल सुद्धरूव गुण-रिद्धी। पुणु हरसीहहु पुत्ति पउत्ती, नामा नंतमई गुण-जुत्ती। जाइ प्रखंडु शीलुवउ पालि उ, कलि-मलु प्रसुहु सचित्तहु खालिउ । पुणु विननो तहु लहु सुय सारी, सयलहु परिवारहु सुपियारी। एहु गोत नंदउ महि मंडलि, जा रवि-ससि निवसहि माइंडलि । बीयउ एंदणु पुणु भाविय जिण गुणु सकल कलालउ सुद्धमए ।१।। तहु नियसील विसुद्ध पउत्ती, असपालहिय णाम सा उत्ती। गंदण चारि ताहि उर जाया, चारिदाण णं पायउ नाया। पढमु साहु णयणसिह पउत्तउ, णीयमग्गु जि मुणिउ णिरुत्तउ। विजयपालहिय तासु पुण भामिणी, सुहम-शील-महाधण सामिणी। बाटु साहु हु बीयउ तणाहु, धण णामु सुपरियण-किय-सुहु । बील्हाही पिय पय-अणुरायउ, पुत्तहु जयलु ताहि उर जायउ ।
SR No.010237
Book TitleJain Granth Prashasti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1953
Total Pages371
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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